Posts

बेहिसी कर्ब के सहराओं में जलती ही नहीं

बेहिसी कर्ब के सहराओं में जलती ही नहीं आरज़ू अब तो किसी तौर मचलती ही नहीं अब तो जीने की कोई राह निकलती ही नहीं अब तबीयत ये किसी तौर बहलती ही नहीं सफ़र इक दायरे में करते हैं शायद हम लोग मुद्दतें गुज़रीं प ये राह बदलती ही नहीं अपनी तक़दीर की ख़ूबी कि करूँ लाख जतन कोई तदबीर मेरे ज़हन की चलती ही नहीं रायगाँ है ये मेरा संग तराशी का हुनर जब कि ये ज़ीस्त किसी अक्स में ढलती ही नहीं रक़्स करती है हवस आज बरहना हर सू हम से अख़लाक़ की मीरास सँभलती ही नहीं सिमटा जाता है बशर अपनी ख़ुदी में “ मुमताज़ ” रिश्तों-नातों पे जमी बर्फ़ पिघलती ही नहीं बेहिसी – भावनाशून्यता , कर्ब – दर्द , रायगाँ – बेकार , ज़ीस्त – ज़िन्दगी , रक़्स – नृत्य , बरहना – नग्न , हर सू – हर तरफ़ , अख़लाक़ – सभ्यता , मीरास – विरासत , बशर – इंसान 

नज़्म - नाउम्मीद

ज़िन्दगी मुस्तक़िल सोज़ है , दर्द है दर्द ऐसा कि जिसकी दवा भी नहीं और राहें मोहब्बत की सुनसान हैं कोई साथी कोई हमनवा भी नहीं तन्हा तन्हा सफ़र कब तलक कीजिये हमसफ़र कोई ग़म के सिवा भी नहीं कुछ तो वीरानी-ए-रोज़-ओ-शब दूर हो ज़ख़्म ही कोई हमको नया फिर मिले हम जो इस आस पर घर से निकले तो अब पेश आता कोई हादसा भी नहीं  

चंद सियासी दोहे

काले को उजला करे , उजले को तारीक संविधान इस देश का है कितना बारीक चोर लुटेरे रहनुमा जाम कर खेलें खेल राधा नाचे झूम कर पी कर नौ मन तेल जनता को फुसलाएँ ये कर के क्या क्या बात जनता अब बतलाएगी , क्या इनकी औक़ात हथकंडे इनके ग़ज़ब , संविधान पर चोट पाँच साल में गिन लिए अरबों-खरबों नोट चोरी , घोटाला , जुआ , हर सू भ्रष्टाचार गूंगे बहरे रहनुमा , अंधी है सरकार बेहिस है अब मीडिया अच्छों का क्या काम बद हो कर बदनाम हों , तब तो होगा नाम    तारीक – अँधेरा , रहनुमा – नेता , बेहिस – भावनाशून्य 

सितारे आँख मलते हैं, शब् ए तारीक सोती है

सितारे आँख मलते हैं , शब् ए तारीक सोती है चलो अब ख़ाक डालो , दास्ताँ अब ख़त्म होती है गराँ गुज़रा है हर दिल पर ये दर्द आलूद नज्ज़ारा गुलों की मौत पर अब तो खिज़ां भी खून रोती है यक़ीं दिल को नहीं आता अभी भी तर्क ए उल्फ़त का तमन्ना अब भी तेरी याद के क़तरे संजोती है यक़ीनन एक दिन उभरेगी इक कोंपल इरादों की निगह अश्कों की फ़स्लें दर्द की धरती पे बोती है तेरी नादानियां पैहम जो धोका देती आई हैं संभल ऐ दिल , भरोसा ज़िन्दगी अब तेरा खोती है लिथड कर गर्द ए उल्फ़त में बहुत मैला हुआ दामन तमन्ना आंसुओं से दिल का हर इक दाग़ धोती है पिला कर खून ए दिल जिस को कभी नाज़ों से पाला था वो हसरत अब भी दिल में एक काँटा सा चुभोती है महक देने लगी है अब ये सड़ती लाश हसरत की अबस "मुमताज़" ये बार ए गरां तू दिल पे ढोती है शब् ए तारीक-अँधेरी रात , गरां-भारी , दर्द आलूद-दर्द में सना हुआ , खिज़ां-पतझड़ ,  तर्क ए उल्फ़त-प्यार का त्याग , क़तरे- बूँदें , पैहम-लगातार , अबस-बेकार , बार ए गराँ- भारी बोझ 

हैं कहीं यादों की किरचें और कहीं उल्फ़त का नाज़

हैं कहीं यादों की किरचें और कहीं उल्फ़त का नाज़ उस गली में कैसे कैसे बिखरे हैं राज़-ओ-नियाज़ जब अंधेरे में सितारा जगमगाता है कोई पूछता है दिल तड़प कर हर तमन्ना का जवाज़ जंग-ए-हस्ती में यही तो होना था अंजामकार आरज़ू ज़ख़्मी पड़ी है मस्लेहत है सरफ़राज़ मुंतशर है ज़िन्दगी , हैं पाँव बोझल , सर्द दिल कैसी कैसी वक़्त ने क़िस्मत से की है साज़ बाज़ सर झुकाए हैं न जाने कब से हम दहलीज़ पर इक नज़र तो हम पे भी डाले कभी वो बेनियाज़ लाख कोशिश की समझने की , न लेकिन खुल सका एक असरार-ए-मुक़द्दर , एक ये हस्ती का राज़ तर-ब-तर है ख़ून से “ मुमताज़ ” सारी ज़िन्दगी काटता है दिल को पैहम ये तमन्ना का गुदाज़ राज़-ओ-नियाज़ – आशिक़ व माशूक़ की गुप्त बातें , जवाज़ – औचित्य , जंग-ए-हस्ती - व्यक्तित्व का युद्ध , अंजामकार – आखिरकार , मस्लेहत – दुनियादारी , सरफ़राज़ – विजयी , मुंतशर – बिखरा हुआ , साज़ बाज़ – साठ गाँठ , बेनियाज़ – अल्लाह , असरार – रहस्य , पैहम – लगातार , गुदाज़ – नर्मी 

याद जब हम को कई यार पुराने आए

याद जब हम को कई यार पुराने आए शमअ इक हम भी सर-ए-राह जलाने आए इक तेरी याद ने क्या क्या न परेशान किया रोज़ ले ले के शब-ए-ग़म के बहाने आए दोस्तो , है बड़ा एहसान कि तुम जब भी मिले याद फिर हम को कई ज़ख़्म पुराने आए ज़िन्दगी ग़म के ख़ज़ानों की है ख़ाज़िन जब से कितने ग़मख़्वार ये दौलत भी चुराने आए दिल की वीरान फ़ज़ा में है ये कैसी हलचल कितने तूफ़ान यहाँ शोर मचाने आए उम्र भर देते रहे हम तुझे लम्हों का हिसाब ज़िन्दगी हम तो तेरा क़र्ज़ चुकाने आए नारसा है मेरी फ़रियाद मुझे है मालूम जाने क्यूँ फिर भी तुझे हाल सुनाने आए हौसला ले के चले दिल में यही ठानी है ऐ फ़लक क़दमों में हम तुझ को झुकाने आए ज़ो ’ फ़ परवाज़ में और ख़्वाब फ़लक छूने का जब ज़मींदोज़ हुए होश ठिकाने आए अब तो “ मुमताज़ ” सफ़र के लिए तैयार रहो चल पड़ो , जब कोई आवाज़ बुलाने आए   

ज़िन्दगी ऐ ज़िन्दगी

हम को ले आई कहाँ तू ज़िन्दगी ऐ ज़िन्दगी है जहाँ की एक इक शै आरज़ी ऐ ज़िन्दगी राह की हर एक मुश्किल कर चुकी आसान जब ख़त्म पर है अब सफ़र , क्यूँ थक गई ऐ ज़िन्दगी हैं जहाँ धोखे , छलावे , दर्द , आँसू , बेकसी आग के इक बेकराँ सैलाब सी ऐ ज़िन्दगी उम्र भर मैंने पिया है ज़हर जो तू ने दिया फिर भी क्यूँ मिटती नहीं ये तश्नगी , ऐ ज़िन्दगी जब बुरा था वक़्त मेरा साथ बस तू ने दिया इशरतों में अब कहाँ तू खो गई , ऐ ज़िन्दगी सारे मंज़र हो गए धुंधले , नज़र में बच रही क़तरा क़तरा बेबसी ही बेबसी ऐ ज़िन्दगी रफ़्ता रफ़्ता यार छूटे , खो गया हर हमसफ़र रह गई “ मुमताज़ ” बस इक बेकली , ऐ ज़िन्दगी   शै – चीज़ , आरज़ी – नक़ली , बेकराँ – अथाह , तश्नगी – प्यास , इशरत – आराम , क़तरा क़तरा – बूँद बूँद