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Showing posts from September 17, 2018

कोई पूछे जहाँ में क्या देखा

कोई पूछे जहाँ में क्या देखा देखा जो कुछ वो ख़्वाब सा देखा जब भी निकले तलाश में उस की दूर तक कोई नक़्श ए पा देखा अपने अंदर तलाश की जब भी इक जहाँ दिल में भी छुपा देखा हो के मजबूर दिल के हाथों से उस को सब की नज़र बचा देखा कब तलक होगी आज़माइश ये अब तो हर एक ज़ुल्म ढा देखा अब तो नासेह भी ये नहीं कहते झूठ का हश्र बस बुरा देखा तीरगी तो किसी तरह न मिटी हम ने दिल का जहाँ जला देखा खाक का एक बुत हूँ मैं "मुमताज़" तू ने ऐ यार मुझ में क्या देखा

अब भी एहसास कोई ख़्वाबज़दा है मुझ में

अब   भी   एहसास   कोई   ख़्वाबज़दा   है   मुझ   में कब   से   मैं   ढूँढ रही   हूँ   के   ये   क्या   है   मुझ   में मुन्तज़िर   कब   से   ये   ख़ामोश ख़ला है   मुझ   में कोई   दर   है   जो   बड़ी   देर   से   वा   है   मुझ   में इक   ज़रा   चोट   लगेगी   तो   उबल   उट्ठेगा एक   मुद्दत   से   तलातुम   ये   रुका   है   मुझ   में फिर   से   फैला   है   मेरे   दिल   में   अजब   सा   ये   सुकूत फिर से   तूफ़ान   कोई   जाग   रहा   है   मुझ   में कोई   आहट   है   के   दस्तक   है   के   फ़रियाद   कोई कैसा   ये   शोर   सा   है , कुछ   तो   बचा   है   मुझ   में ये ...

कभी सरापा इनायत, कभी बला होना

कभी सरापा इनायत , कभी बला होना ये किस से आप ने सीखा है बेवफ़ा होना उसे सफ़र की थकन ने मिटा दिया लेकिन न रास आया हमें भी तो रास्ता होना दिल-ओ-दिमाग़ की परतें उधेड़ देता है दिल-ओ-दिमाग़ की दुनिया का क्या से क्या होना सितम ज़रीफ़ ये तेवर , ये क़ातिलाना अदा कभी हज़ार गुज़ारिश , कभी ख़फ़ा होना वो इक अजीब सा नश्शा वो मीठी मीठी तड़प वो पहली बार मोहब्बत से आशना होना ख़ुमार इस में भी "मुमताज़" तुम को आएगा किसी ग़रीब का इक बार आसरा होना

भड़कना, कांपना, शो'ले उगलना सीख जाएगा

भड़कना , कांपना , शो ' ले   उगलना   सीख   जाएगा चराग़ ए   रहगुज़र   तूफ़ाँ में   जलना   सीख   जाएगा नया   शौक़   ए   सियासत   है , ज़रा   कुछ   दिन   गुज़रने   दो बहुत   ही   जल्द   वो   नज़रें   बदलना   सीख   जाएगा अभी   एहसास   की   शिद्दत   ज़रा   तडपाएगी   दिल   को अभी   टूटी   है   हसरत , हाथ   मलना   सीख   जाएगा हर   इक   अरमान   को   मंज़िल   मिले   ये   क्या   ज़रूरी   है उम्मीदों   से   भी   दिल   आख़िर   बहलना   सीख   जाएगा शनासा   रफ़्ता   रफ़्ता   मसलेहत   से   होता   जाएगा ये   दिल   फिर   आरज़ूओं   को   कुचलना   सीख   जाएगा ये   बेहतर   है   के   बच्चे   को   ज़मीं   पर   छोड़   दें ...