Posts

Showing posts from May 12, 2018

हमारे बीच पहले एक याराना भी होता था

हमारे बीच पहले एक याराना भी होता था कभी चेहरा तुम्हारा मेरा पहचाना भी होता था यही काफ़ी कहाँ था , तेरे आगे सर झुका देते हमें दुनिया के लोगों को जो समझाना भी होता था शिकम की आग में जलना तो फिर आसान था यारब मगर दो भूके बच्चों को जो बहलाना भी होता था फ़सीलें उन हवादिस ने दिलों में खेंच डाली थीं “ हर इक आबाद घर में एक वीराना भी होता था ” गुज़र कर बारहा तूफ़ान-ए-यास-ओ-बदनसीबी से फ़रेब-ए-ज़िन्दगी दानिस्ता फिर खाना भी होता था धरम और ज़ात के हर ऐब से जो पाक था यारो रह-ए-दैर-ओ-हरम में एक मयख़ाना भी होता था तुम्हें अब याद हो “ मुमताज़ ” की चाहे न हो लेकिन कभी दुनिया के लब पर अपना अफ़साना भी होता था

नज़्म – जीत

जो हौसला बलंद है नफ़स नफ़स कमंद है हमारी हर ख़ुशी हमारे हौसलों में बंद है वो बेकसी अतीत है यही हमारी जीत है हर एक देशवासी के लबों पे ये ही गीत है ये एकता मिसाल है हमारा ये कमाल है वतन के लब पे आज भी मगर वही सवाल है है कौन दूध का धुला अभी तलक नहीं खुला अभी तक इस पियाले में जहर का घूंट है घुला भरें सभी तिजोरियाँ हैं कैसी कैसी चोरियाँ सुला रहे हैं हम ज़मीर को सुना के लोरियाँ उठो , कि वक़्त आ गया बढ़ाओ हर कदम नया ज़रा तो तुम भी सोच लो कि फ़र्ज़ है तुम्हारा क्या ज़रा तो ख़ुद में झांक लो ज़मीर को भी आंक लो फ़रीज़े की जबीन पर कोई सितारा टाँक लो ये छोटी छोटी चोरियाँ जो जुर्म की हैं बोरियाँ हमारे मुल्क के लिए बनी हैं जो निंबोरियाँ इन्हें भी अब मिटाएँगे ख़ुदी को आज़माएँगे कि हाथ यूँ बढ़ाएँगे ज़मीर को जगाएँगे खिलाना है नया चमन बनाना है नया वतन बदल दें आओ मिल के हम समाज के सभी चलन न भेद ज़ात पाँत का न धर्म का न ज़ात का जवाब हम को देना है सदी सदी की बात का यही हमारी जीत है यही तो भारी जीत है बुराइयों की हार में

नज़्म – दूसरा गाँधी

समंदर से उठी , देहली तलक फिर छा गई आँधी जो आमादा हुआ अनशन पे अगली क़ौम का गाँधी हुकूमत से कहा ललकार कर , अब सामने आओ मिटा डालो करप्शन या तो कुर्सी से उतर जाओ जो सदियों सदियों से कुचले हुए लूटे हुए थे हम जो मज़हब ज़ात के टुकड़ों में बस टूटे हुए थे हम हमारे मुंतशिर थे दिल न जाने कितने ख़ानों में धरम में , ज़ात में , क़ौमों में , रक़्बों में , ज़बानों में हमारी हर नफ़स बेजान थी , जज़्बात मुर्दा थे हर इक हसरत हेरासाँ थी , सभी जज़्बात मुर्दा थे वो बहर-ए-बेकराँ हसरत का फिर अंगड़ाई ले उठ्ठा नया जज़्बा , नई ताक़त , नई बीनाई ले उठ्ठा वो बेकस , बेबस-ओ-मजबूर एहसासात जाग उठ्ठे मिटा डाला था जिन को वक़्त ने , जज़्बात जाग उठ्ठे पुकार इस देश की धरती की हम को इक जगह लाई हज़ारे ने ज़रा आवाज़ दी , दुनिया सिमट आई कमर कस कर उठा हर देशवासी अपनी ताक़त भर झुका सकता नहीं कोई हमें अब अपने क़दमों पर हमारे सब्र का अब इम्तेहाँ कोई नहीं लेगा हिसाब अब पाई पाई का सभी से बिल यक़ीं लेगा हमारे देश के दिल की सदा अन्ना हज़ारे है नई इस क़ौम का अब रहनुमा अन्ना हज़ारे है

करवट करवट जलता होगा

करवट करवट जलता होगा वो भी क्या सो पाया होगा मेरे बिना अब तन्हा होगा वो भी शायद रोया होगा रात गए जब तन्हा होगा याद तो मुझ को करता होगा उलझन में मेरे बारे में जाने क्या क्या सोचा होगा शाम को सूरज डूबेगा तो उस का दिल भी डूबा होगा उम्र तो कट जाएगी लेकिन लम्हा लम्हा प्यासा होगा अब भी मैं सोचा करती हूँ जाने अब वो कैसा होगा हम ख़ुद ही “ मुमताज़ ” मिटे हैं किस्मत से क्यूँ शिकवा होगा