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Showing posts from April, 2019

यूँ ही थका न मेरी ज़िन्दगी गुज़र के मुझे

यूँ ही थका न मेरी ज़िन्दगी गुज़र के मुझे उतारने हैं अभी क़र्ज़ उम्र भर के मुझे मुझे बलंद उड़ानों से खौफ़ आने लगा फ़रेब याद रहे अपने बाल-ओ-पर के मुझे मिटा के बारहा तामीर मुझ को करता रहा वजूद देता रहा ज़िन्दगी बिखर के मुझे ख़फ़ा हूँ अब तो मनाने के वास्ते कब से पुकारती है मेरी ज़िन्दगी संवर के मुझे नुक़ूश छोडती जाती हैं रेशमी यादें गुज़रता जाता है हर पल उदास कर के मुझे मैं मस्लेहत के हिसारों में क़ैद हूँ कब से जूनून छोड़ गया मेरे पर कतर के मुझे मुझे पलटने न देगी मेरी अना लेकिन " बुला रहा है कोई बाम से उतर के मुझे" हयात नाम है पैहम जेहाद का यारो सुकून आएगा "मुमताज़" अब तो मर के मुझे yuN hi thaka na meri zindagi guzar ke mujhe utaarne haiN abhi qarz umr bhar ke mujhe mujhe baland udaanoN se khauf aane laga fareb yaad rahe apne baal-o-par ke mujhe mita ke barahaa taamir mujh ko karta raha wajood deta raha zindagi bikhar ke mujhe khafaa hooN ab to manaane ke waaste kab se pukaarti hai meri zindagi sanwar ke mujhe n

सारी दुनिया से उलझ कर, ग़म से टकराने के बाद

सारी दुनिया से उलझ कर , ग़म से टकराने के बाद अक़्ल तो आती है लेकिन ठोकरें खाने के बाद ساری دنیا سے الجھ کر، غم سے ٹکرانے کے بعد عقل تو آتی ہے لیکن ٹھوکریں کھانے کے بعد क्या बहारें आएंगी , गुलशन के जल जाने के बाद खिल नहीं सकता है गुल इक बार मुरझाने के बाद کیا بہاریں آئینگی گلشن کے جل جانے کے بعد کھل نہیں سکتا ہے گل اک بار مرجھانے کے بعد ज़ब्त लाज़िम है , मगर जब हद से बढ़ जाए तड़प क्यूँ छलक जाए न फिर पैमाना भर जाने के बाद ضبط لازم ہے مگر جب حد سے بڑھ جائے تڑپ کیوں چھلک جائے نہ پھر پیمانہ بھر جانے کے بعد ज़र्रे ज़र्रे पर जबीं फोड़ी तो तू हासिल हुआ तेरा दर पा ही लिया काबा-ओ-बुतख़ाने के बाद ذرے ذرے پر جبیں پھوڑی تو تو حاصل ہوا تیرا در پا ہی لیا کعبہ و بتخانے کے بعد दफ़्न रहने दो हमारी रूह का कर्ब-ए-बला ग़म का क़िस्सा क्या कहें खुशियों के अफ़साने के बाद   دفن رہنے دو ہماری روح کا کربِ بلا غم کا قصہ کیا کہیں خوشیوں کے افسانے کے بعد वक़्त-ए-रुख़सत सब्र की हम को हिदायत की , मगर फूट कर वो रो दिया फिर हम को समझाने के बाद وقتِ رخصت صبر کی ہم کو ہدایت کی مگر

रात हो तो दिल से लावा सा उबल जाता है क्यूँ

रात हो तो दिल से लावा सा उबल जाता है क्यूँ मेहर रुख़्सत हो तो फिर मेहताब जल जाता है क्यूँ رات ہو تو دل سے لاوا سا ابل جاتا ہے کیوں مہر رخصت ہو تو پھر مہتاب جل جاتا ہے کیوں वो तो देता ही रहा है दिल को वादों का फ़रेब उस के वादों से मगर ये दिल बहल जाता है क्यूँ وہ تو دیتا ہی رہا ہے دل کو وعدوں کا فریب اس کے وعدوں سے مگر یہ دل بہل جاتا ہے کیوں तीरगी तो रात की क़िस्मत में लिक्खी है , मगर मेहर ये हर रोज़ नादिम हो के ढल जाता है क्यूँ تیرگی تو رات کی قسمت میں لکھی ہے مگر مہر یہ ہر روز نادم ہو کے ڈھل جاتا ہے کیوں तुम न अपना दिल संभालो , हम कि परदे में रहें कैसा दिल है , इक झलक से ही मचल जाता है क्यूँ تم نہ اپنا دل سنبھالو، ہم کہ پردے میں رہیں کیسا دل ہے، اک جھلک سے ہی مچل جاتا ہے کیوں औरतें तो ख़ैर बेपर्दा हैं , उन का है गुनाह बच्चियों पर भी ज़िना का तीर चल जाता है क्यूँ عورتیں تو خیر بےپردہ ہیں، ان کا ہے گناہ بچیوں پر بھی زنا کا تیر چل جاتا ہے کیوں बारहा सूरज की किरनों ने किया है ये सवाल आसमाँ के रुख़ प् कालक वक़्त मल जाता है क्यूँ بارہا سورج کی

धड़कनें चुभने लगी हैं, दिल में कितना दर्द है

धड़कनें चुभने लगी हैं , दिल में कितना दर्द है टूटते दिल की सदा भी आज कितनी सर्द है बेबसी के ख़ून से धोना पड़ेगा अब इसे वक़्त के रुख़ पर जमी जो बेहिसी की गर्द है बोझ फ़ितनासाज़ियों का ढो रहे हैं कब से हम जिस की पाई है सज़ा हम ने , गुनह नाकर्द है ज़ब्त की लू से ज़मीं की हसरतें कुम्हला गईं धूप की शिद्दत से चेहरा हर शजर का ज़र्द है छीन ले फ़ितनागरों के हाथ से सब मशअलें इन दहकती बस्तियों में क्या कोई भी मर्द है ? दिल में रौशन शोला - ए - एहसास कब का बुझ गया हसरतें ख़ामोश हैं , अब तो लहू भी सर्द है अब कहाँ जाएँ तमन्नाओं की गठरी ले के हम हर कोई दुश्मन हुआ है , मुनहरिफ़ हर फ़र्द है जुस्तजू कैसी है , किस शय की है मुझ को आरज़ू मुस्तक़िल बेचैन रखता है , जुनूँ बेदर्द है   तुम तअस्सुब का ज़रा पर्दा हटा कर देख लो अब तुम्हें हम क्या बताएँ कौन दहशत गर्द है ऐसा लगता है कि सदियों से ये दिल वीरान है आरज़ूओं पर जमी " मुमताज़ " कैसी गर्द है     

खुली नसीब की बाहें मरोड़ देंगे हम

खुली नसीब की बाहें मरोड़ देंगे हम कि अब के अर्श का पाया झिंझोड़ देंगे हम کھلی نصیب کی باہیں مروڑ دینگے ہم کہ اب کے عرش کا پایا جھنجوڑ دینگے ہم जुनूँ बनाएगा बढ़ बढ़ के आसमान में दर ग़ुरूर अब के मुक़द्दर का तोड़ देंगे हम جنوں بنائیگا بڑھ بڑھ کے آسمان میں در غرور اب کے مقدر کا توڑ دینگے ہم अभी उड़ान की हद भी तो आज़मानी है फ़लक को आज बलंदी में होड़ देंगे हम ابھی اُڑان کی حد بھی تو آزمانی ہے فلک کو آج بلندی میں ہوڑ دینگے ہم है मसलेहत का तक़ाज़ा तो आओ ये भी सही हिसार-ए -आरज़ू थोडा सिकोड़ देंगे हम ہے مصلحت کا تقاضا تو آؤ یہ بھی سہی حصارِ آرزو تھوڑا سکوڑ لینگے ہم जो ज़िद पे आए तो इक इन्क़ेलाब लाएँगे जेहाद-ए -वक़्त को लाखों करोड़ देंगे हम جو ضد پہ آئے تو اک انقلاب لائینگے جہادِ وقت کو لاکھوں کروڑ دینگے ہم इरादा कर ही लिया है तो जान भी देंगे इस इम्तेहाँ में लहू तक निचोड़ देंगे हम ارادہ کر ہی لیا ہے تو جان بھی دینگے اس امتحاں میں لہو تک نچوڑ دینگے ہم उठेगा दर्द फिर इंसानियत के सीने में हर एक दिल का फफोला जो फोड़ देंगे हम اٹھیگا درد پھر انسانیت کے سینے