चंद सियासी दोहे
काले
को उजला करे, उजले को तारीक
संविधान
इस देश का है कितना बारीक
चोर
लुटेरे रहनुमा जाम कर खेलें खेल
राधा
नाचे झूम कर पी कर नौ मन तेल
जनता
को फुसलाएँ ये कर के क्या क्या बात
जनता
अब बतलाएगी, क्या इनकी औक़ात
हथकंडे
इनके ग़ज़ब, संविधान पर चोट
पाँच
साल में गिन लिए अरबों-खरबों नोट
चोरी, घोटाला, जुआ, हर सू भ्रष्टाचार
गूंगे
बहरे रहनुमा, अंधी है सरकार
बेहिस
है अब मीडिया अच्छों का क्या काम
बद
हो कर बदनाम हों, तब तो होगा नाम
तारीक
–
अँधेरा, रहनुमा – नेता, बेहिस – भावनाशून्य
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