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तरही ग़ज़ल - खुली नसीब की बाहें मरोड़ देंगे हम

खुली नसीब की बाहें मरोड़ देंगे हम  कि अब के अर्श का पाया झिंझोड़ देंगे हम  जुनूँ बनाएगा बढ़ बढ़ के आसमान में दर  ग़ुरूर अब के मुक़द्दर का तोड़ देंगे हम  अभी उड़ान की हद भी तो आज़मानी है फ़लक को आज बलंदी में होड़ देंगे हम  है मसलेहत का तक़ाज़ा तो आओ ये भी सही  हिसार-ए -आरज़ू थोडा सिकोड़ देंगे हम कोई ये दुश्मन-ए -ईमान से कह दो जा कर जेहाद-ए -वक़्त को लाखों करोड़ देंगे हम इरादा कर ही लिया है तो जान भी देंगे इस इम्तेहाँ में लहू तक निचोड़ देंगे हम उठेगा दर्द फिर इंसानियत के सीने में हर एक दिल का फफोला जो फोड़ देंगे हम समेट लेंगे सभी दर्द के सराबों को शिकस्ता ज़ात के टुकड़ों को जोड़ देंगे हम अगर यकीन है खुद पर तो ये भी मुमकिन है "हवा के रुख को भी जब चाहें मोड़ देंगे हम" अना भी आज तो "मुमताज़" कुछ है शर्मिंदा चलो फिर आज तो ये जिद भी छोड़ देंगे हम khuli naseeb ki baaheN marod denge ham ke ab ke arsh ka paaya jhinjod denge ham junooN banaaega badh badh ke aasmaan meN dar ghuroor ab ke muqaddar ka tod denge ham abhi udaan ki had bhi to aazmaani hai falak ko aaj bal

ग़ज़ल - ज़र्ब दे दे कर मेरी हस्ती प ढाती है मुझे

ज़र्ब दे दे कर मेरी हस्ती प ढाती है मुझे फिर मेरी दीवानगी वापस बनाती है मुझे ज़लज़ले आते रहे हैं मेरी हस्ती में मगर मेरी ज़िद हर बार फिर महवर प लाती है मुझे बेबहा कितने ख़ज़ाने दफ़्न हैं मुझ में कहीं ज़िन्दगी नादान है, पैहम लुटाती है मुझे रोज़ गुम हो जाती हूँ मैं इस जहाँ की भीड़ में मेरी तन्हाई पता मेरा बताती है मुझे जब कभी बुझने लगे मेरा वजूद-ए -बेकराँ कोई तो मुझ में है शै, जो फिर जलाती है मुझे चाहे जितनी भी हो गहरी तीरगी अय्याम की मेरे दिल की रौशनी रस्ता दिखाती है मुझे चैन लेने ही नहीं देती हैं मुझ को वहशतें इक मुसलसल बेकली दर दर फिराती है मुझे मैं पलट कर देख लूँ तो संग हो जाए वजूद "याद की ख़ुशबू पहाड़ों से बुलाती है मुझे" बारहा जेहद-ए -मुसलसल तोड़ देता है मगर मुझ में जो "मुमताज़" है वो आजमाती है मुझे zarb de de kar meri hasti pa, dhaati hai mujhe phir meri deewangi waapas banaati hai mujhe zalzale aate rahe hain meri hasti meN, magar meri zid har baar phir mahwar pa laati hai mujhe bebahaa kitne khazaane dafn haiN mujh meN kahiN