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Showing posts from November, 2019

किस को समझाएँ यहाँ हम दिल-ए-रंजूर की बात

किस को समझाएँ यहाँ हम दिल-ए-रंजूर की बात बुझते बुझते जो जला उस मह-ए-बे नूर की बात کس کو سمجھائیں یہاں ہم دلِ رنجور کی بات بجھتے بجھتے جو جلا اُس مہِ بے نور کی بات             जल न जाएँ कहीं जलवे की तपिश से आँखें ताब-ए-नज़्ज़ारा अगर हो तो करो तूर की बात جل نہ جائیں کہیں جلوے کی تپش سے آنکھیں تابِ نظارہ اگر ہو تو کرو طور کی بات आरज़ू मचली , तबीयत पे ख़ुमार आने लगा छेड़ दी किस ने सरापा मए-भरपूर की बात آرزو مچلی، طبیئت پہ خمار آنے لگا چھیڑ دی کس نے سراپا مئے بھرپور کی بات ले के शहवत की अजब एक चमक आँखों में शेख़ जी करते रहे देर तलक हूर की बात لے کے شہوت کی اجب ایک چمک آنکھوں مین شیخ جی کرتے رہے دیر تلک حور کی بات दार शरमाया , पशेमान हुआ दीन-ए-हक़ फिर अनल हक़ से अदा हो गई मंसूर की बात دار شرمایا، پشیمان ہوا دینِ حق پھر انا الحق سے ادا ہو گئی منصور کی بات मुंतज़िर लम्हों की वुस ' अत की न पूछो "मुमताज़" रात की बात भी लगती है बहुत दूर की बात منتظر لمحوں کی وسعت کی نہ پوچھو ممتازؔ رات کی بات بھی لگتی ہے بہت دور کی بات दिल-ए-रंजूर

हर दिल है बदगुमान, अना हुक्मराँ है अब

हर दिल है बदगुमान , अना हुक्मराँ है अब रिश्तों के रखरखाव में ख़ाली ज़ियाँ है अब ہر دل ہے بدگمان، انا حکمراں ہے اب رشتوں کے رکھ رکھاؤ میں خالی زیاں ہے اب देखा उन्हें तो दिल का समाँ और हो गया ख़ामोश है ज़ुबाँ , प नज़र में ज़ुबाँ है अब دیکھا اُنہیں تو دل کا سماں اور ہو گیا خاموش ہے زباں پہ نظر میں زباں ہے اب वो छोड़ कर गया है सराब-ए-उम्मीद में लम्हों का तूल ज़ेहन पे बार-ए-गराँ है अब وہ چھوڑ کر گیا ہے سرابِ امید میں لمحوں کا طول زہن پہ بارِ گراں ہے اب परवाज़ बस ख़याल की मंज़िल पे है अभी हाथों में हर शिकारी के देखो कमाँ है अब پرواز بس خیال کی منزل پہ ہے ابھی ہاتھوں میں ہر شکاری کے دیکھو کماں ہے اب बचपन में जो बसाया था साहिल की रेत पर वो शहर हसरतों का , बता दे , कहाँ है अब بچپن میں جو بنایا تھا ساحل کی ریت پر وہ شہر حسرتوں کا بتا دے کہاں ہے اب क्या जाने क्यूँ बहार भी नज़रें बचा गई गुलशन के हर शजर पे ख़िज़ाँ ही ख़िज़ाँ है अब کیا جانے کیوں بہار بھی نظریں بچا گئی گلشن کے ہر شجر پہ خزاں ہی خزاں ہے اب अपनी तमाज़तों से मेरे पर जलाए क्यूँ इतना उदा