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Showing posts from October 29, 2011

ग़ज़ल - इसी दिल में जल्वागर हैं सभी रूह के उजाले

इसी दिल में जल्वागर हैं सभी रूह के उजाले यहीं काबा-ए-मोहब्बत , यहीं इश्क़ के शिवाले ISI DIL ME.N JALWAGAR HAI.N SABHI ROOH KE UJAALE YAHI.N KAABA E MOHABBAT YAHI.N ISHQ KE SHIWAALE कहीं क़ुर्बतों में भी है कोई फ़ासला ज़रूरी ये मोहब्बतों की शिद्दत मुझे मार ही न डाले KAHI.N QURBATO.N ME.N BHI HAI KOI FAASLA ZAROORI YE MOHABBATO.N KI SHIDDAT MUJHE MAAR HI NA DAALE जो अना की कश्मकश में मेरे साथ थे हमेशा यहीं दिल में ख़ेमाज़न हैं उन लम्हों के रिसाले JO ANAA KI KASH MA KASH ME.N MERE SAATH THE HAMESHA YAHI.N DIL ME.N KHEMAZAN HAI.N UN LAMHO.N KE RISAALE तेरी बेनियाज़ियों से ये सुरूर मर न जाए अभी आरज़ू है बरहम उसे तू ज़रा मना ले TERI BENIYAAZIYO.N SE YE SUROOR MAR NA JAAEY ABHI AARZOO HAI BARHAM USE TU ZARA MANA LE ये खंडर पड़ा है कब से वीरान कौन जाने यहाँ हर तरफ़ लगे हैं मजबूरीयों के जाले YE KHANDAR PADA HAI KAB SE VEERAAN KAUN JAANE YAHA.N HAR TARAF LAGE HAI.N MAJBOORIYO.N KE JAALE वहाँ मस्लेहत का यारो कोई दर खुले तो कैसे जहाँ ज़ात पर पड़े हों ख़ुद्