ज़ख़्म महरूमी का भरने से रहा
ज़ख़्म महरूमी का भरने से रहा " कर्ब का सूरज बिखरने से रहा" ज़ीस्त ही गुज़रे तो अब गुज़रे मियाँ वो हसीं पल तो गुज़रने से रहा खेलते आए हैं हम भी जान पर मुश्किलों से दिल तो डरने से रहा फ़ैसला हम ही कोई कर लें चलो वो तो ये एहसान करने से रहा पल ख़ुशी के पर लगा कर उड़ गए वक़्त ही ठहरा , ठहरने से रहा है ग़नीमत लम्हा भर की भी ख़ुशी अब मुक़द्दर तो सँवरने से रहा जोश की गर्मी से पिघलेगा क़फ़स अब जुनूँ घुट घुट के मरने से ...