हर ख़ुशी आधी अधूरी, ख़्वाब हर झूठा दिया
हर ख़ुशी आधी अधूरी , ख़्वाब हर झूठा दिया सोचती हूँ , मुझ को मेरी ज़िन्दगी ने क्या दिया ख़्वाब दिखला कर सराबों तक मुझे फिर ले गई ज़िन्दगी ने वरगला कर मुझ को फिर धोका दिया थी जुनूँ की इन्तेहा , तो फिर ये सब होना ही था शौक़ से जो था बनाया , आज वो घर ढा दिया रौशनी है तेज़ इतनी , कुछ नज़र आता नहीं ये कहाँ मुझ को जूनून-ए-शौक़ ने पहुंचा दिया दिल के इक इक ज़ख्म को खुरचा है उस के सामने ख़ूब मैं ने भी जफ़ाओं का उसे बदला दिया बोलती आँखों में जाने राज़ क्या क्या थे निहां इक नज़र ने गोशा गोशा रूह का महका दिया क़ैद-ए-दिल से हो न पाए एक भी हसरत फ़रार दिल के दरवाज़े पे मैं ने उम्र भर पहरा दिया उस सुनहरे पल में जाने कितनी सदियाँ क़ैद थीं मेरी क़िस्मत ने मुझे जो दिलरुबा लहज़ा 1 दिया मैं जहान-ए-ख़्वाब की रानाइयों