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Showing posts from March 11, 2019

ज़हन ओ दिल इरफ़ान से सरशार होना चाहिए

ज़हन ओ दिल इरफ़ान से सरशार होना चाहिए   अब इबादत का जुदा मेयार होना चाहिए   नाम है मुस्लिम , मगर इस्लाम का ऐ दोस्तो   अब ज़ुबान-ए-दिल से भी इक़रार होना चाहिए   देख डाला है नज़र ने हर नज़ारा , अब मगर गुंबद - ए-ख़ज़रा का बस दीदार होना चाहिए   अहमद-ए-मुरसल की ज़ात-ए-पाक का जब ज़िक्र हो   रूह आसिम , बावज़ू किरदार होना चाहिए   होगा फिर "मुमताज़" दिल पर इंकेशाफ़-ए-राज़-ए-हक़ ज़हन-ओ-दिल में वो हेरा का गार होना चाहिए