नज़्म -तलाश
दिलों में पिन्हाँ है अब तक जो राज़ , फाश न कर मेरे हबीब , मुझे अब कहीं तलाश न कर तेरी तलाश का मरकज़ ही खो गया जानां हमारे बीच बड़ा फ़र्क़ हो गया जानां तमन्ना उलझी है अब तक इसी तरद्दुद में न मुझ को ढून्ढ , के अब मैं नहीं रही खुद में न अब वो शोला बयानी , न वो गुमाँ बाक़ी वो आग सर्द हुई , रह गया धुंआ बाक़ी हर एक लम्हा तबस्सुम की अब वो ख़ू न रही नज़र में ज़ू न रही , ज़ुल्फ़ में ख़ुश्बू न रही न हसरतों के शरारे , न वो जुनूँ ही रहा न तेरे इश्क़ का वो दिलनशीं फुसूँ ही रहा जो मिट चला है वही हर्फ़ ए बेनिशाँ हूँ मैं मैं खुद भी ढून्ढ रही हूँ , के अब कहाँ हूँ मैं तलाशती हूँ वो सा ' अत , जो मैं ने जी ही नहीं मैं तुझ को कैसे मिलूँ अब , के मैं रही ही नहीं ख़ला ये दिल का तेरे प्यार का तबर्रुक