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Showing posts from August 27, 2018

हर आरज़ू को लूट लिया ऐतबार ने

हर     आरज़ू     को     लूट   लिया   ऐतबार   ने पहुँचा   दिया   कहाँ   ये   वफ़ा   के   ख़ुमार   ने मुरझाए   गुल ,   तो   ज़ख़्म   खिलाए   बहार ने "दहका   दिया   है   रंग-ए-चमन   लालाज़ार   ने" पलकों में भीगा प्यार भी हम को न दिख सका आँखों   को   ऐसे   ढाँप   लिया   था   ग़ुबार   ने क्या   दर्द   है   ज़ियादा   जो   रोया   तू   फूट कर पूछा   है   आबलों   से   तड़प   कर   ये   ख़ार   ने किरदार     आब   आब     शिकारी   का     हो   गया कैसी     नज़र     से   देख   लिया   है   शिकार   ने गोशों   में   रौशनी   ने       कहाँ   दी   हैं   दस्तकें "मुमताज़"   तीरगी   भी      अता   की   बहार   ने