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Showing posts from May 28, 2019

नज़्म - मुवाज़िना

नज़्म - मुवाज़िना हसरतों के संग काटो , राह के काँटे चुनो मर्द की दुनिया में जीना किस को कहते हैं , सुनो आहनी पाबंदियों से आरज़ू बुनते हैं हम ज़ुल्म के पत्थर प् लेकिन सर नहीं धुनते हैं हम ग़म के तूफाँ में जले हैं , सब्र की क़ंदील में रास्ता अपना बनाते हैं अना के नील में क़ाबिलीयत को हमारी रास्ता मिलता नहीं ये गराँ संग- ए- त ' अस्सुब सब्र से हिलता नहीं हिकमत- ए -अमली हमारी आप को दिखती नहीं साख के बाज़ार में सच्चाई ये बिकती नहीं तोहमतें हम पर हैं लाखों , हम प् सौ दुश्नाम हैं शोहरतें सारी की सारी आप ही के नाम हैं   आहनी – लोहे की , अना – अहं , नील – मिस्र की एक नदी , गराँ – भारी , संग- ए- त ' अस्सुब – भेद-भाव का पत्थर , हिकमत- ए -अमली – तदबीर , दुश्नाम – गाली موازنہ حسرتوں کے سنگ کاٹو، راہ کے کانٹے چنو مرد کی دنیا میں جینا کس کو کہتے ہیں سنو آہنی پابندیوں سے آرزو بنتے ہیں ہم ظلم کے پتھر پہ لیکن سر نہیں دھنتے ہیں ہم غم کے طوفاں میں جلے ہیں صبر کی قندیل میں راستہ اپنا بناتے ہیں انا کی نیل میں قابلیت کو ہماری راستہ ملتا نہیں یہ گر