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Showing posts from August 25, 2019

तखय्युल के फ़लक से कहकशाएँ हम जो लाते हैं

तखय्युल के   फ़लक   से   कहकशाएँ   हम   जो   लाते   हैं   सितारे   खैर   मकदम   के   लिए   आँखें   बिछाते   हैं ज़मीरों   में लगी   है   ज़ंग , ज़हन -ओ -दिल   मुकफ़्फ़ल   हैं जो   खुद   मुर्दा   हैं , जीने   की   अदा   हम   को   सिखाते   हैं मेरी   तन्हाई   के   दर   पर   ये   दस्तक   कौन   देता   है मेरी   तीरा   शबी   में   किस   के   साये   सरसराते   हैं हक़ीक़त   से   अगरचे   कर   लिया   है   हम   ने   समझौता हिसार -ए -ख्वाब   में    बेकस   इरादे   कसमसाते   हैं मज़ा   तो   खूब   देती   है   ये   रौनक   बज़्म   की   लेकिन मेरी   तन्हाइयों   के   दायरे   मुझ   को   बुलाते   हैं बिलकती ...