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ग़ज़ल - आ गया अब रास मुझ को राह का हर पेच-ओ-ख़म

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आ गया अब रास मुझ को राह का हर पेच-ओ-ख़म ले चले हैं साथ मुझ को राह के ये ज़ेर-ओ-बम   AA GAYA AB RAAS MUJH KO RAAH KA HAR PECH O KHAM LE CHALE HAIN SAATH MUJH KO WAQT KE YE ZER O BAM पेट में रोटी हो तो इंसाँ रहे साबित क़दम डोल ही जाता है ईमाँ जल रहा हो जब शिकम PET MEN ROTI HO TO INSAAn RAHE SAABIT QADAM DOL HI JATA HAI EEMAAn JAL RAHA HO JAB SHIKAM पढ़ ही लेती हूँ मैं उसके ज़ेहन का इक इक सतर वास्ते इसके नहीं दरकार दिल को जाम-ए-जम PADH HI LETI HOON MAIN US KE ZEHN KI IK IK SATAR WASTE IS KE NAHIN DARKAAR DIL KO JAAM E JAM इम्तियाज़-ए-बातिल-ओ-हक़ है ख़िरद वालों का काम हम से दीवाने के आगे क्या शिवाला , क्या हरम IMTIYAAZ E BAATIL O HAQ HAI KHIRAD WAALON KA KAAM HAM SE DEEWAANE KE AAGE KYA SHIWAALA KYA HARAM हर तरफ़ आतिश , तबाही , ख़ून , नफ़रत , साज़िशें किस सियाही से किया है ये वरक़ तूने रक़म HAR TARAF AATISH SIYAAHI KHOON NAFRAT SAAZISHEN KIS SIYAAHI SE KIYA HAI YE WARAQ TU NE RAQAM क्यूँ ये दिल धड़के , रगों में ख़ून क्यूँ गर्दिश करे ज़िन्दगी क