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Showing posts from November 23, 2018

हर कहीं है अक्स तेरा हर कली में तेरी बू

हर कहीं है अक्स तेरा हर कली में तेरी बू इस ज़मीं से उस ज़माँ तक हर कहीं बस तू ही तू हूँ गुनह सर ता पा लेकिन फिर भी ऐ मेरे ग़फ़ूर मासियत है मेरी आदत , और रहमत तेरी ख़ू कायनातों के भँवर में फिर रहे हैं बेक़रार जाने ले जाए कहाँ अब हम को तेरी आरज़ू ऐ मेरे मालिक , तेरी रहमत हमें दरकार है भर गया है इस ज़मीं पर अब गुनाहों का सुबू ज़र्रे ज़र्रे पर अयाँ हैं नक़्श हर तख़्लीक़ के अक़्ल - ए - आवारा फिरे है हैराँ हैराँ , कू ब कू तेरे दर तक आ के भी दामन रहा ख़ाली मेरा तेरी रहमत को सदा देती है मेरी आरज़ू या इलाही , हम्द तेरी मैं करूँ कैसे रक़म चाहिए दिल की तहारत , उँगलियाँ हों बावज़ू ढाँप ले मेरे गुनाहों को तू अपने साए से रक्खी है " मुमताज़ " की तू ने हमेशा आबरू   har kahiN hai aks tera har kali meN teri bu is zameeN se us zamaaN tak har kahiN bas tu hi tu huN gunah sar taa paa lekin phir bhi aye mere ghafoor maasiyat hai t