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Showing posts from August 29, 2018

हर आरज़ू को लूट लिया ऐतबार ने

हर     आरज़ू     को     लूट   लिया   ऐतबार   ने पहुँचा   दिया   कहाँ   ये   वफ़ा   के   ख़ुमार   ने मुरझाए   गुल ,   तो   ज़ख़्म   खिलाए   बहार ने "दहका   दिया   है   रंग-ए-चमन   लालाज़ार   ने" पलकों में भीगा प्यार भी हम को न दिख सका आँखों   को   ऐसे   ढाँप   लिया   था   ग़ुबार   ने क्या   दर्द   है   ज़ियादा   जो   रोया   तू   फूट कर पूछा   है   आबलों   से   तड़प   कर   ये   ख़ार   ने किरदार     आब   आब     शिकारी   का     हो   गया कैसी     नज़र     से   देख   लिया   है   शिकार   ने गोशों   में   रौशनी   ने       कहाँ   दी   हैं   दस्तकें "मुमताज़"   तीरगी   भी    ...

बनी जाती है नाहक़ ज़िद तेरी यलग़ार का बाइस

बनी   जाती   है   नाहक़ ज़िद   तेरी   यलग़ार का   बाइस यक़ीं हद   से   ज़ियादा बन   न   जाए   हार   का   बाइस अना   ने   ज़हन की   ज़रखेज़   मिट्टी   में   जो   ज़िद   बोई ज़रा   सा   मस ' अला   फिर   बन   गया   तक़रार का   बाइस ग़ुरूर ईमान   ने   फ़िरऔनियत    का   बारहा   तोडा लहू   फिर   बन   गया   नापाकी   ए   ज़ुन्नार का   बाइस ज़माना   अडचनें   हाइल करे   अब   लाख   राहों   में मेरा   रद्द   ए   अमल   होगा   मेरी   रफ़्तार   का   बाइस ज़माने   से   गिला   कैसा , मुक़द्दर   से   शिकायत   क्या " अमल   मेरा   बना   है   ख़ामी   ए   किरदार   का   बाइस " हुई   है   रेज़ा   रेज़ा   ज़ात ...