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Showing posts from April 22, 2012

ग़ज़ल - दम ब दम खौल रहा है मुझ में

दम ब दम खौल रहा है मुझ में एक लावा सा दबा है मुझ में دم بہ دم کھول رہا ہے مجھ میں ایک لاوا سا دبا ہے مجھ میں धड़कनें दिल में हज़ारों हैं अभी अब भी इक ख़्वाब बचा है मुझ में دھڑکنیں دل میں ہزاروں ہیں ابھی اب بھی اک خواب بچا ہے مجھ میں ज़ब्त की टूट न जाए दीवार कोई तूफ़ान रुका है मुझ में ضبط کی ٹوٹ نہ جاۓ دیوار کوئ طوفان رکا ہے مجھ میں कितनी रंगीन है फ़ज़ा दिल की कुछ तो है, कुछ तो खिला है मुझ में کتنی رنگین ہے فضا دل کی کچھ تو ہے، کچھ تو کھِلا ہے مجھ میں शोला रेज़ों से खेलना चाहे एक बच्चा जो छुपा है मुझ में شعلہ ریزوں سے کھیلنا چاہے ایک بچہ، جو چھپا ہے مجھ میں सब मिटा जाता है रफ़्ता रफ़्ता जाने कैसी ये वबा है मुझ में سب مٹا جاتا ہے رفتہ رفتہ جانے کیسی یہ وبا ہے مجھ میں जल रहा है वजूद मुद्दत से एक महशर सा बपा है मुझ में جل رہا ہے وجود مدت سے ایک محشر سا بپا ہے مجھ میں गिर के टूटा है कोई ख़्वाब अभी इक छनाका सा हुआ है मुझ में گر کے ٹوٹا ہے کوئ خواب ابھی اک چھناکا سا ہوا ہے مجھ میں मुंतशिर है तमामतर हस्ती मेरा किरदार बँटा है मुझ में منتشر ہے تمام تر ہستی میرا ک...

तरही ग़ज़ल - अब भी एहसास कोई ख़्वाबज़दा है मुझ में

अब  भी  एहसास  कोई  ख़्वाबज़दा  है  मुझ  में कब  से  मैं  ढूँढ रही  हूँ  के  ये  क्या  है  मुझ  में मुन्तज़िर  कब  से  ये  ख़ामोश ख़ला है  मुझ  में कोई  दर  है  जो  बड़ी  देर  से  वा  है  मुझ  में इक  ज़रा  चोट  लगेगी  तो  उबल  उट्ठेगा एक  मुद्दत  से  तलातुम  ये  रुका  है  मुझ  में फिर  से  फैला  है  मेरे  दिल  में  अजब  सा  ये  सुकूत फिर से  तूफ़ान  कोई  जाग  रहा  है  मुझ  में कोई  आहट  है  के  दस्तक  है  के  फ़रियाद  कोई कैसा  ये  शोर  सा  है , कुछ  तो  बचा  है  मुझ  में ये  चमक  जो  मेरे  शे'रों  में  नज़र  आती  है गर्द  आलू...

ग़ज़ल - वफ़ा के अहदनामे में हिसाब ए जिस्म ओ जाँ क्यूँ हो

वफ़ा  के  अहदनामे  में  हिसाब  ए  जिस्म  ओ  जाँ क्यूँ  हो बिसात  ए  इश्क़  में  अंदाज़ा  ए  सूद  ओ  ज़ियाँ क्यूँ  हो मेरी  परवाज़  को  क्या  क़ैद  कर  पाएगी  हद  कोई बंधा  हो  जो  किसी  हद  में  वो  मेरा  आसमाँ  क्यूँ  हो सहीफ़ा  हो  के  आयत  हो  हरम  हो  या  सनम  कोई कोई  दीवार  हाइल  मेरे  उस  के  दर्मियाँ  क्यूँ  हो तअस्सुब  का  दिलों  की  सल्तनत  में  काम  ही  क्या  है मोहब्बत  की  ज़मीं  पर  फितनासाज़ी हुक्मराँ क्यूँ  हो सरापा  आज़माइश  तू  सरापा  हूँ  गुज़ारिश  मैं तेरी  महफ़िल  में  आख़िर  बंद  मेरी  ही  जुबां  क्यूँ  हो जहान ए  ज़िन्दगी  से  ग़म...

ग़ज़ल - झूटी बातों पर रोया सच

झूटी  बातों  पर  रोया  सच हर  बाज़ी  में  जब  हारा  सच कुछ  तो  मुलम्मा  इस  पे  चढाओ बेक़ीमत  है  ये  सादा  सच झूट  ने  जब  से  पहनी  सफेदी छुपता  फिरता  है  काला  सच अब  है  हुकूमत  झूट  की  लोगो दर  दर  भटके  बंजारा  सच सच  सुनने  की  ताब  न  थी  तो क्यूँ  आख़िर  तुम  ने  पूछा  सच बन  जाए  जो  वजह  ए तबाही "बेमक़सद  है  फिर  ऐसा  सच" मिसरा  क्या  "मुमताज़ " मिला  है हम  ने  लफ़्ज़ों  में  ढाला  सच jhooti baatoN par roya sach har baazi meN jab haara sach kuchh to mulamma is pe chadhaao beqeemat hai ye saada sach jhoot ne jab se pahni safedi chhupta phirta hai kalaa sach ab hai hukoomat jhoot ki logo dar dar bhatke banjaara sach sach sunne k...

ग़ज़ल - भड़कना, कांपना, शो'ले उगलना सीख जाएगा

भड़कना , कांपना , शो ' ले  उगलना  सीख  जाएगा चराग़ ए  रहगुज़र  तूफाँ में  जलना  सीख  जाएगा नया  शौक़  ए  सियासत  है , ज़रा  कुछ  दिन  गुज़रने  दो हमारा रहनुमा  नज़रें  बदलना  सीख  जाएगा अभी  एहसास  की  शिद्दत  ज़रा  त ड़ पाएगी  दिल  को अभी  टूटी  है  हसरत , हाथ  मलना  सीख  जाएगा हर  इक  अरमान  को  मंज़िल  मिले  ये  क्या  ज़रूरी  है उम्मीदों  से  भी  दिल  आख़िर  बहलना  सीख  जाएगा शनासा  रफ़्ता  रफ़्ता  मसलेहत  से  होता  जाएगा ये  दिल  फिर  आरज़ूओं  को  कुचलना  सीख  जाएगा छुपा  है  दिल  में  जो  आतिश फ़िशां , इक  दिन  तो  फूटेगा रुको  "मुमताज़" ये  लावा  उबलना  सीख  जाएगा bhadakna, ...