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Showing posts from October 31, 2018

अपने जज़्बात की तुगियानी से उलझा न करो

अपने   जज़्बात   की   तुगियानी से   उलझा   न   करो जानलेवा   है   ये   चाहत , उसे   चाहा   न   करो अपने   अन्दर   के   बयाबानों   में   खोया   न   करो " इतना   गहरा   मेरी   आवाज़   से   पर्दा   न   करो" मैं   तो   इक   टूटा   हुआ   ख़्वाब   हूँ , मेरा   क्या   है मेरे   बारे   में   कभी   ग़ौर   से   सोचा   न   करो मार   डालेगा   तमन्नाओं   का   बेसाख्तापन             इतनी   बेचैन   तमन्नाओं   को   यकजा    न   करो ज़ब्त   का   बाँध   जो   टूटा   तो   बहा   लेगा   तुम्हें दिल   में   उठते   हुए   तूफ़ानों   को   रोका   न   करो बड़ी   मुश्किल   से   चुरा   पाई   हूँ   इन   से   ख़ुद   को सर   पटकते   हुए   सन्नाटों   का   चर्चा   न   करो खो   न   जाओ   कहीं   फिर   अपनी   ही   तारीकी   में   दश्त ए तन्हाई   में   शब्   भर   यूँ   ही   भटका   न   करो रोशनी   चुभती   है   "मुमताज़" अभी   आँखों   में   आज   रहने   दो   ये   तारीकी , उजाला   न   करो apne jazbaat ki tughiyaani meN uljha na karo jaan lewa hai ye chaahat, use