कभी तो इन्केशाफ़ हो, सराब है, कि तूर है
कभी तो इन्केशाफ़ हो , सराब है , कि तूर है फ़ज़ा ए दिल में आज कल बसा हुआ जो नूर है ये मसलेहत की साज़िशें , नसीब की इनायतें हयात की नवाज़िशें , जो पास है , वो दूर है दलील है कि आरज़ू का बाग़ है हरा अभी जो दिल के संगलाख़ से गुलाब का ज़हूर है मिली है रौशनी , तो फिर बढ़ेगी ताब ए दीद भी अभी से दीद का कहाँ निगाह को शऊर है जो आरज़ू है जुर्म तो हमें भी ऐतराफ़ है ख़ता है तो ख़ता सही , जो है , तो फिर हुज़ूर , है लिए चली ये बेख़ुदी हमें तो आसमान पर निगाह ओ दिल हैं पुरफुसूं , ये इश्क़ का सुरूर है छुपाए लाख राज़ तू , सिले हों तेरे लब मगर तेरी निगाह कह गई , कि कुछ न कुछ ज़रूर है अगर मेरी वफ़ाओं पर तू "ना ज़ाँ " है , तो जान ए जाँ मुझे भी ऐतराफ़ है , कि तू मेरा ग़ुरूर है kabhi to inkeshaaf ho, saraab hai ki toor hai fazaa-e-dil meN aaj kal basaa hua jo noor hai ye maslehat kee saazisheN, naseeb kee inaayateN hayaat kee nawaazisheN, jo paas hai wo door hai daleel hai ki aarzoo ka baagh hai hara abhi jo...