आँखों में क्या राज़ छुपा था
आँखों में क्या राज़ छुपा था कुछ तो उस ने यार कहा था टूटे फूटे राज़ थे दिल में और भला क्या इस के सिवा था ज़हन की भीगी भीगी ज़मीं पर यादों का इक शहर बसा था उजड़ी हुई दिल की वादी में कौन ये हर पल नग़्मासरा था सारी फ़सीलें टूट गई थीं कैसा अजब तूफ़ान उठा था बदली थीं बस वक़्त की नज़रें साया भी हम को छोड़ गया था यादों के वीरान नगर में दूर तलक बस एक ख़ला था दिल में कोई हसरत ही न होती ये भी क्या "मुमताज़" बुरा था