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Showing posts from August 25, 2018

आँखों में क्या राज़ छुपा था

आँखों में क्या राज़ छुपा था कुछ तो उस ने यार कहा था टूटे फूटे राज़ थे दिल में और भला क्या इस के सिवा था ज़हन की भीगी भीगी ज़मीं पर यादों का इक शहर बसा था उजड़ी हुई दिल की वादी में कौन ये हर पल नग़्मासरा था सारी फ़सीलें टूट गई थीं कैसा अजब तूफ़ान उठा था बदली थीं बस वक़्त की नज़रें साया भी हम को छोड़ गया था यादों के वीरान नगर में दूर तलक बस एक ख़ला था दिल में कोई हसरत ही न होती ये भी क्या "मुमताज़" बुरा था