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Showing posts from December 22, 2018

फ़र्ज़ है, पास-ए-मोहब्बत है, वफ़ा है, शायद

फ़र्ज़ है , पास-ए-मोहब्बत है , वफ़ा है , शायद इस अज़ीयत 1 में तो कुछ और मज़ा है शायद दिल तो कहता है कि मेरी ही ख़ता है , शायद ज़हन कहता है कि ये खेल बड़ा है शायद पा 2 -ए-क़िस्मत पे जो ग़श 3 खा के गिरा है कोई ज़िन्दगी भर के सफ़र से वो थका है शायद जहाँ क़दमों के निशाँ हैं , वहाँ भीगी है ज़मीं दश्त-ए-सेहरा 4 में कोई आबला 5 पा है शायद धज्जियाँ जिस की फ़ज़ाओं में उडी जाती हैं झूट के तन पे ये रिश्तों की क़बा 6 है शायद ज़र्ब 7 देता है , मिटाता है , सितम ढाता है मेरे क़ातिल को मेरा राज़ पता है शायद खाए जाती है मेरी रूह 8 की सैराबी 9 को ये शब-ए-तार 10 तो मूसा का असा 11 है शायद रोज़ देता है सबक़ मुझ को नए हस्ती के मुझ में जो बोल रहा है , वो ख़ुदा है शायद शोर बातिन 12 में शब-ओ-रोज़ 13 उठा करता है ये मेरे दिल के धड़कने की सदा है शायद रू-ए-मग़रूर 14 पे लिक्खा है मेरी मात का राज़ उस ने "मुमताज़" मुझे जीत लिया है शायद 1- तकलीफ़ , 2- पाँव , 3- बेहोशी , 4- रेगिस्तान का जंगल , 5- छाला , 6- लिबास , 7- चोट , 8- आत्मा ,