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Showing posts from June 18, 2018

इस दौर-ए-तरक़्क़ी में ये रफ़्तार के आँसू

इस दौर-ए-तरक़्क़ी में ये रफ़्तार के आँसू देखे हैं कभी तुम ने ? किसी ग़ार के आँसू फ़ुरसत है किसे , देखे किसी यार के आँसू देखो , न बहाया करो बेकार के आँसू ग़ाज़े की तरह सजते हैं रुख़सार के आँसू क़ातिल से कहो , पोंछे न तलवार के आँसू इस टूटते रिश्ते की ख़लिश किस से छुपी थी लहजे में नज़र आए थे गुफ़्तार के आँसू चिड़ियों ने तो घर छोड़ा था परवाज़ की धुन में पत्तों प जमे रह गए अशजार के आँसू ये ज़ख़्मी खंडर , गुमशुदा तहज़ीब की लाशें बिखरे हैं हर इक ज़र्रे पे अदवार के आँसू हर लफ़्ज़ चमकता है ग़ज़ल का कि यक़ीनन “ मुमताज़ ” अयाँ होते हैं अनवार के आँसू