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Ham teri bazm men #Mujtaba #Aziz #Naza Childhood Series

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Once upon a time in Mumbai

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अज़ीज़ नाज़ाँ का अदब और ‎अदीबों के अज़ीज़ नाज़ाँ ‎-मुमताज़ अज़ीज़ नाज़ाँ

यूँ तो क़व्वाली और अदब का रिश्ता बड़ा पुराना और ख़ास है। हज़रत अमीर ख़ुसरो से शुरू करें ‎तो अक्सर बेशतर क़व्वाल ऐसे हुए हैं, जो या तो ख़ुद शायर रहे हैं, या जिन्होंने असातिज़ा के कलाम से ‎अपने फ़न को सजाया है, फिर चाहे वो ग़ज़लें हों, या गिरहबंदी में पेश किए जाने वाले अशआर। लेकिन ‎दौर-ए-जदीद में अक्सर इस रिश्ते को टूटते देखा गया है। पिछले कई बरसों में क़व्वालों ने आमियाना ‎कलाम को इस क़दर तरजीह दी है कि ऐसा लगने लगा है कि क़व्वाली और अदब मक़्नातीस के ‎मुख़ालिफ़ छोरों की तरह हैं, जो मिलना तो दूर, कभी नज़दीक भी नहीं आ सकते। यहाँ तक कि ‎क़व्वालियाँ लिखने वालों की एक जमाअत ही अलग से नज़र आती है, जिनको और कुछ भी कहा जाए, ‎अदीब तो हरगिज़ नहीं कहा जा सकता, क्यूँ कि अक्सर उनके कलाम अदबी तक़ाज़ों से बड़ी बेहयाई से ‎मुंह चुराते रहते हैं। उनका मक़सद सिर्फ़ ऐसा कलाम लिखना ही रहा है, जिससे वो किसी न किसी तरह ‎अवाम के दिल में जगह बना लें, और उन कलामों ने क़व्वालों को भी अवाम का दिल लुभाने का बड़ा ‎आसान सा रास्ता दिखा दिया है। ‎ लेकिन क़व्वाली की दुनिया में कुछ ऐसे भी फ़नकार गुजरे हैं, जो इल्म और फ़न के साथ ही ‎साथ अदब के भी शैदाई