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Showing posts from March 4, 2017

हर इक मोड़ पे एक शिकारी हर इक गाम पे तीरंदाज़

हर इक मोड़ पे एक शिकारी हर इक गाम पे तीरंदाज़ जाने कहाँ तक पहुँचाएगी ज़ख़्मी परों की ये परवाज़ अपनी मोहब्बत के हाथों से हम को मिला है ये ऐज़ाज़ बिखर गए सब जीवन के सुर टूट गया हस्ती का साज़ शामें बोझल , सुबहें काली , रातें वीराँ , दिन बेजान क्या जाने अंजाम हो कैसा जब है अभी ऐसा आग़ाज़ लब शोला , आरिज़ अंगारे , आँखों में है बर्क़-ए-तपाँ क्या क्या हैं दिलसोज़ अदाएँ , कैसा दिलकश है अंदाज़ वक़्त के इस वीराँ सहरा में दिल के सराबों के उस पार क्या जाने किस की आहट है , कौन ये देता है आवाज़ ख़ाली है जज़्बात का दामन हर हसरत नाकाम हुई अपने दिल की महरूमी पर आज हमें होता है नाज़ हसरत का वीरान खंडर , जज़्बों की दौलत , इश्क़ की लाश क़िस्मत की बंजर धरती में दफ़्न हैं कैसे कैसे राज़ क्या अंजाम फ़साने को दें सोच रहे हैं कब से हम कैसा मोड़ इसे दे कर अब ख़त्म करें क़िस्सा “ मुमताज़ ” गाम – क़दम , परवाज़ – उड़ान , ऐज़ाज़ इनआम , आग़ाज़ – शुरुआत , दिलसोज़ – दिल में दर्द पैदा करने वाला , सराबों के – मरीचिकाओं के