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ग़ज़ल - हलावत होती है थोड़ी सी नफ़रत की मोहब्बत में

हलावत होती है थोड़ी सी नफ़रत की मोहब्बत में बड़ी बारीक सरहद है मोहब्बत और नफ़रत में HALAAWAT HOTI HAI THODI SI NAFRAT KI MOHABBAT MEN BADI BAAREEK SARHAD HAI MOHABBAT AUR NAFRAT MEN न तेरे इश्क़ की बुनियाद ही गहरी रही इतनी न हम ख़ुद को भुला पाए तेरी आँखों की चाहत में NA TERE ISHQ KI BUNIYAAD HI GEHRI RAHI ITNI NA HAM KHUD KO BHULA PAAE TERI AANKHON KI CHAAHAT MEN तेरे इल्ज़ाम से हस्ती मेरी मैली नहीं होगी पशेमानी घुली है तेरी इस नाकाम तोहमत में TERE ILZAAM SE HASTI MERI MAILI NAHIN HOGI PASHEMAANI GHULI HAI TERI IS NAAKAAM TOHMAT MEN हर इक शय महंगी है बस सिर्फ़ इक इंसान सस्ता है मोहब्बत बिकती है यारो यहाँ कौड़ी की क़ीमत में HAR IK SHAY MEHNGI HAI BAS SIRF IK INSAAN SASTA HAI MOHABBAT BIKTI HAI YAARO YAHAN KAUDI KI QEEMAT MEN सभी औज़ार अपने तेज़ कर ले ऐ मेरे क़ातिल मज़ा आने लगा है अब हमें तेरी अदावत में SABHI AUZAAR APN E TEZ KAR LE AYE MERE QAATIL MAZAA AANE LAGA HAI AB HAMEN TERI ADAAVAT MEN कोई रंगीन गुल भोली मगस को खा भी सकता है छुपी हैं क