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Showing posts from September 14, 2018

जो मुन्तज़िर हैं उम्मीदें , उन्हें बताया जाय

जो   मुन्तज़िर हैं   उम्मीदें , उन्हें   बताया   जाय ये   जलता   शहर   ए वफ़ा   किस   तरह   बचाया   जाय सजाओ   लाख   तबस्सुम , मगर   नुमायाँ   रहे जिगर   का   दाग़   भला   कैसे   अब   छुपाया   जाय जो   कायनात   ए   दिल   ओ   जाँ को   ज़ेर   ओ   बम   कर   दे कुछ   इस   तरह   से   कोई   हश्र   अब   उठाया   जाय मकान   ए   दिल   के   सभी   रोज़न   ओ   दर   बंद   करो अब   आरज़ू   को   यूँ   ही   दर   ब दर   फिराया   जाय अजीब   सी   ये   कशाकश   है   दिल   की   राहों   में " के   आगे   जा   न   सकूं   लौट   कर   न   आया   जाय " मैं   हँसना   चाहूँ   तो   ये   छीन   ले ...

दे कर सदाएं बारहा , छुप कर वो मुस्कराए क्यूँ

दे   कर   सदाएं   बारहा , छुप   कर   वो   मुस्कराए   क्यूँ निस्बत   नहीं   कोई   तो   फिर , हम   से   नज़र   चुराए   क्यूँ रख   आए   उस   के   दर   पे   हम   सब   निस्बतें , सारी ख़ुशी वो   अपने   इल्तेफात   का   एहसान   भी   जताए   क्यूँ जाँबारी का   जूनून   तो   लाज़िम है   फ़र्द फ़र्द   में रस्ता दिखाए   जो   हमें   सर   भी   वही   कटाए   क्यूँ कैसी   ये   जुस्तजू   सी   है   उस   दश्त   ए ख़ार ख़ार   में मजरूह   बारहा   हुआ , दिल   फिर   वहीँ   पे   जाए   क्यूँ तारीकी   जब   मिटी   तो   फिर   ज़ाहिर   हुआ   हर   इक   शिगाफ़ मेरी   शिकस्ता   रूह   में   इतने   दिए   जलाए   क्यूँ ...

उस का शेवा कि सितम तोड़ो, सताते जाओ

उस   का   शेवा कि   सितम   तोड़ो , सताते   जाओ और   तकाज़ा , कि   हर   इक   ज़ुल्म   उठाते   जाओ क्या   मज़ा   जीने   का , सीखा   न   जो   मरने   का   हुनर मौत   से   भी   तो   ज़रा   आँख   मिलाते   जाओ उस   की   आँखों   में   गिरफ़्तार   हैं   सौ   मैख़ाने दम   ब दम   बादा ए मस्ती   में   नहाते   जाओ वो   जो   आया   तो   इन्हीं   अश्कों   में   ढूँढेगा   तुम्हें पानियों   पर   भी   निशाँ   कुछ   तो   बनाते   जाओ एक   इक   याद   ए   मोहब्बत , एक   इक   वस्ल   का   पल जाते   जाते   ये   सभी   शमएँ बुझाते   जाओ दुश्मनी   करनी   है   तुम   को , तो   ज़रा   जम   के   करो " जाते ...