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Showing posts from November 10, 2018

कभी तशवीश में रहना कभी हैराँ होना

कभी तशवीश में रहना कभी हैराँ होना इक अज़ीयत ही तो है इश्क़ में इम्काँ होना इश्क़ को ख़ुद ही समझ जाओगे , देखो तो कभी रौशनी देख के परवाने का रक़्साँ होना सहर अंगेज़ है तख़्लीक़-ए-बशर का लम्हा एक क़तरे का यूँ ही फैल के तूफाँ होना आह ! इखलास - ओ - मोहब्बत का गराँ हो जाना हाय ! इस दौर में इंसान का अर्ज़ाँ होना लुत्फ़ क्या ठहरे हुए आब में पैराकी का कितना मुश्किल है किसी काम का आसाँ होना मेरी हस्ती को समझना है तो बस यूँ समझो एक तूफ़ाँ का किसी क़तरे में पिन्हाँ होना आज के दौर की क़दरों की है ख़ूबी , कि यहाँ " आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसां होना " जज़्ब तूफ़ान को " मुमताज़ " किया है दिल में कोई आसाँ नहीं गुलशन में बयाबाँ होना तशवीश = कशमकश , अजीअत = यातना , इम्काँ = उम्मीद , रक्सां = नाचता हुआ , सेहर अंगेज़ = जादू भरा , तख्लीक़ = रचना , क़तरा = बूँद , इखलास = सच्चाई , गरां = महंगा , अर्जां = सस्ता , पैराकी = त