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Showing posts from November 16, 2018

कौन-ओ-मकाँ के असरारों से क्या लेना

कौन - ओ - मकाँ के असरारों से क्या लेना भूके शिकम को अबरारों से क्या लेना जिस का हर गिर्दाब किया करता है तवाफ़ झूमती कश्ती को धारों से क्या लेना भूक की डायन राजमहल तक क्यूँ जाए राहबरों को   लाचारों   से   क्या   लेना अपने अंधेरों में ख़ुद को खो बैठे हैं   अंधे दिलों को अनवारों से क्या लेना धूप का साया ले के सफ़र पे निकली हूँ मेरी थकन को अशजारों से क्या लेना हम घर से नालाँ , घर हम से रहता है सहन - ओ - मकाँ को बंजारों से क्या लेना यूँ भी तो जलते रहते हैं अलफ़ाज़ मेरे “मेरे क़लम को अंगारों से क्या लेना” हम तो हैं ' मुमताज़ ' सिपाही ख़ामा के हम को भला इन तलवारों से क्या लेना कौन - ओ - मकाँ = ब्रम्हांड , असरार = राज़ , शिकम = पेट , अबरार = पुजारी , गिर्दाब = भंवर , तवाफ़ = परिक्रमा , अनवार = रौशनियाँ , अश्जार = पेड़ , सहन - ओ - मकाँ = घर और आँगन , ख़ामा = क़लम کون   و   مکاں   کے   اسراروں   سے   کیا   لینا ب