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Showing posts from October 24, 2018

ख़ाक हो जाउंगी माना कि बिखर जाऊँगी

ख़ाक हो जाउंगी माना कि बिखर जाऊँगी मलगुजे वक़्त में कुछ रंग तो भर जाऊँगी   जलते सहराओं से कर रक्खी है यारी मैं ने प्यास के सामने अब सीना सिपर जाऊँगी   एक इक कर के अलग हो गईं राहें सब की और मैं सोच रही हूँ कि किधर जाऊँगी हद्द - ए - बीनाई मेरे साथ ही चलती है मगर जुस्तजू में तेरी ता हद्द - ए - नज़र जाऊँगी   जाने किस रूप में अब वक़्त मुझे ढालेगा मैं जो टूटी हूँ तो कुछ और सँवर जाऊँगी दिल के वीराने में उतरे हैं ग़मों के साए तीरगी फैलेगी कुछ और तो डर जाऊँगी   बारहा उभरूँगी मैं इक नए सूरज की तरह " कौन कहता है कि मौत आई तो मर जाऊँगी " बढ़ता जाएगा जो " मुमताज़ " ये वहशत का हिसार डर के ख़ुद अपने अँधेरों में उतर जाऊँगी   خاک   ہو   جاؤنگی, مانا   کہ   بکھر   جاؤنگی ملگجے   وقت   میں   کچھ   رنگ   تو   بھر   جاؤنگی جلتے   صحراؤں   سے   کر   رکھی    ہے   یاری   میں   نے پیاس   کے   سامنے   اب   سینہ   سپر   جاؤنگ