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Showing posts from February 19, 2017

याद जब हम को कई यार पुराने आए

याद जब हम को कई यार पुराने आए शमअ इक हम भी सर-ए-राह जलाने आए इक तेरी याद ने क्या क्या न परेशान किया रोज़ ले ले के शब-ए-ग़म के बहाने आए दोस्तो , है बड़ा एहसान कि तुम जब भी मिले याद फिर हम को कई ज़ख़्म पुराने आए ज़िन्दगी ग़म के ख़ज़ानों की है ख़ाज़िन जब से कितने ग़मख़्वार ये दौलत भी चुराने आए दिल की वीरान फ़ज़ा में है ये कैसी हलचल कितने तूफ़ान यहाँ शोर मचाने आए उम्र भर देते रहे हम तुझे लम्हों का हिसाब ज़िन्दगी हम तो तेरा क़र्ज़ चुकाने आए नारसा है मेरी फ़रियाद मुझे है मालूम जाने क्यूँ फिर भी तुझे हाल सुनाने आए हौसला ले के चले दिल में यही ठानी है ऐ फ़लक क़दमों में हम तुझ को झुकाने आए ज़ो ’ फ़ परवाज़ में और ख़्वाब फ़लक छूने का जब ज़मींदोज़ हुए होश ठिकाने आए अब तो “ मुमताज़ ” सफ़र के लिए तैयार रहो चल पड़ो , जब कोई आवाज़ बुलाने आए   

ज़िन्दगी ऐ ज़िन्दगी

हम को ले आई कहाँ तू ज़िन्दगी ऐ ज़िन्दगी है जहाँ की एक इक शै आरज़ी ऐ ज़िन्दगी राह की हर एक मुश्किल कर चुकी आसान जब ख़त्म पर है अब सफ़र , क्यूँ थक गई ऐ ज़िन्दगी हैं जहाँ धोखे , छलावे , दर्द , आँसू , बेकसी आग के इक बेकराँ सैलाब सी ऐ ज़िन्दगी उम्र भर मैंने पिया है ज़हर जो तू ने दिया फिर भी क्यूँ मिटती नहीं ये तश्नगी , ऐ ज़िन्दगी जब बुरा था वक़्त मेरा साथ बस तू ने दिया इशरतों में अब कहाँ तू खो गई , ऐ ज़िन्दगी सारे मंज़र हो गए धुंधले , नज़र में बच रही क़तरा क़तरा बेबसी ही बेबसी ऐ ज़िन्दगी रफ़्ता रफ़्ता यार छूटे , खो गया हर हमसफ़र रह गई “ मुमताज़ ” बस इक बेकली , ऐ ज़िन्दगी   शै – चीज़ , आरज़ी – नक़ली , बेकराँ – अथाह , तश्नगी – प्यास , इशरत – आराम , क़तरा क़तरा – बूँद बूँद 

वुसअतों की ये तवालत, रास्ते हैं बेकराँ

वुसअतों की ये तवालत , रास्ते हैं बेकराँ ये सफ़र जारी रहा है कारवां दर कारवां लम्हा लम्हा वहशतें , हर गाम सौ नाकामियाँ रंग कितनी बार बदलेगा ये बेहिस आसमाँ ज़िन्दगी की कशमकश के दर्मियाँ उल्फ़त तेरी जलते सहरा की तपिश में जैसे कोई सायबाँ सारी हसरत , हर इरादा , हर जुनूँ , हर हौसला अब के तो सब कुछ बहा ले जाएंगी ये आंधियां याद की वीरान गलियों में हैं किस की आहटें कौन दाख़िल है हमारी खिल्वतों के दर्मियाँ आज मुद्दत बाद फिर उस राह से गुज़रे जहाँ चार सू बिखरे पड़े हैं आरज़ूओं के निशाँ क्यूँ ये शब् की सर्द तारीकी में हलचल मच गई किस की दर्दीली सदा से गूंजती हैं वादियाँ जाँ संभाली थी अभी "मुमताज़" मुश्किल से , कि फिर जाग उठी गुस्ताख़ हसरत , ज़िन्दगी है नौहा ख्वाँ वुसअतों कि ये तवालत-फैलाव का ये फैलाव , बेकराँ-अनंत , लम्हा- पल , वहशतें-बेचैनियाँ , गाम-क़दम , बेहिस-भावना रहित , सहरा-मरुस्थल , खिल्वतों के दरमियाँ-अकेलेपन में , दाख़िल-दख्ल देने वाला , सर्द तारीकी-ठंडा अँधेरा , नौहा ख्वाँ-दर्द भरे गीत गा रही है 

महकी हुई वो राहें वो रहबरी का आलम

महकी हुई वो राहें वो रहबरी का आलम अब ख़्वाब हो गया है वो आशिक़ी का आलम हर दर्द सो गया है हर टीस खो गई है धड़कन की ये उदासी ये बेहिसी का आलम तारीकियों में शब की तन्हाई का ये नौहा मुझको न मार डाले ये ख़ामुशी का आलम ये बेपनाह वहशत , हर लहज़ा बेक़रारी और दिल में हर घड़ी है इक बेरुख़ी का आलम मुद्दत हुई न लेकिन गुज़रा वो एक लम्हा पिनहाँ था एक पल में शायद सदी का आलम असरार खुल गया तो टूटा भरम का शीशा किस दर्जा बेरहम है ये आगही का आलम है लख़्त लख़्त हसरत , है साँस साँस बोझल “ मुमताज़ ” अब कहाँ वो दिल की ख़ुशी का आलम रहबरी – साथ चलना , बेहिसी – भावना शून्यता , तारीकियों में – अँधेरों में , नौहा – दुख का गीत , बेपनाह वहशत – बहुत जियादा घबराहट , लहज़ा – पल , पिनहाँ – छुपा हुआ , असरार – रहस्य , आगही – मालूम होना , लख़्त लख़्त – टुकड़ा टुकड़ा 

शायरी और फ़ेसबुक

     सुना है कि फ़ेसबुक ने सोशल नेटवर्किंग कि दुनिया में इंक़ेलाब बरपा कर दिया है। इंक़ेलाब भी ऐसा वैसा नहीं, बल्कि विश्वव्यापी है। यहाँ वहाँ, इधर उधर, स्कूलों में कॉलेजों में, घरों में दफ़्तरों में, कहाँ कहाँ नहीं है ये फ़ेसबुक। बस यूँ समझ लीजिये कि कण कण में से भगवान को निकाल कर आजकल फ़ेसबुक बस गया है। और जब से इसने भारत कि सरज़मीन पर हमला बोला है, यहाँ का हर ख़ास ओ आम फ़ेसबुकमय हो गया है।  एक ही सफ़ में खड़े हो गए महमूद ओ अयाज़ न कोई बंदा रहा और न कोई बंदा नवाज़       आज जहाँ देखो वहाँ फ़ेसबुक का राज है। बच्चे अपनी बुक को छोड़ कर फ़ेसबुक पर लगे पड़े हैं, गृहणियाँ घर बार छोड़ कर फ़ेसबुक के स्टेटस का अपने स्टेटस से मिलान करने में व्यस्त हैं, दफ़्तरों में साहब से ले कर चपरासी तक सभी फ़ेसबुक के मुरीद हैं। और तो और अब तो अपने पीएम तक टेक्नो सैवी हो गए हैं। तो जनाब हालत ये है कि उठते बैठते, खाते पीते, सोते जागते फ़ेसबुक के स्टेटस अपडेट किए जा रहे हैं। “आज कौन सी सब्ज़ी बनाई” और “छुट्टी मनाने किस आईलैंड पर गए” से ले कर “ओबामा ने कहाँ डांस किया” और “मिशेल ओबामा ने किस रंग कि ड्रेस पहनी थी” तक, हर जानकारी

रेज़ा रेज़ा ज़िन्दगी

एक भी खोने न पाया तेरा टुकड़ा ज़िन्दगी किस तरह हम ने संभाली रेज़ा रेज़ा ज़िन्दगी बेरुख़ी देखी ज़माने की तो अंदाज़ा हुआ कैसे पल भर में बदल लेती है लहजा ज़िंदगी हर क़दम इक आज़माइश , हर नफ़स इक इम्तेहाँ कुछ तो कह , क्या है भला तेरा इरादा ज़िन्दगी ये सफ़र की वुसअतें और तू अभी से थक गई चंद साँसें हैं अभी ऐ मेरी मुर्दा ज़िन्दगी ये तेरा बेशक्ल चेहरा , ये तेरा बदख़ू निज़ाम हम ने हर लहज़ा तेरा रक्खा है पर्दा ज़िन्दगी ये ग़म-ए-दौराँ की वुसअत , दर्द की बेताबियाँ है किसे फ़ुरसत सुने अब तेरा नौहा ज़िन्दगी मैं तुझे चाहूँ , न चाहूँ , करना तो होगा निबाह मेरी धड़कन पर भी है तेरा इजारा ज़िन्दगी कितने कम एहसास , कितनी वुसअतें तन्हाई में कितनी कम जीने की हिस , कितनी ज़ियादा ज़िन्दगी ये थकन , ये वहशतें , महरूमियों की ये जलन हम इस आतिश में जले शाना ब शाना ज़िन्दगी रेज़ा रेज़ा – टुकड़ा टुकड़ा , वुसअतें – फैलाव , बदख़ू – बुरी आदत वाला , निज़ाम – व्यवस्था , लहज़ा – पल , नौहा – दुख का गीत , इजारा – हुकूमत , हिस – महसूस करने की क्षमता , शाना ब शाना – कंधे से कंधा