सितारे आँख मलते हैं, शब् ए तारीक सोती है
सितारे आँख मलते हैं, शब् ए तारीक सोती
है
चलो अब ख़ाक डालो, दास्ताँ अब ख़त्म
होती है
गराँ गुज़रा है हर दिल पर ये दर्द आलूद नज्ज़ारा
गुलों की मौत पर अब तो खिज़ां भी खून रोती है
यक़ीं दिल को नहीं आता अभी भी तर्क ए उल्फ़त का
तमन्ना अब भी तेरी याद के क़तरे संजोती है
यक़ीनन एक दिन उभरेगी इक कोंपल इरादों की
निगह अश्कों की फ़स्लें दर्द की धरती पे बोती है
तेरी नादानियां पैहम जो धोका देती आई हैं
संभल ऐ दिल, भरोसा ज़िन्दगी अब तेरा खोती है
लिथड कर गर्द ए उल्फ़त में बहुत मैला हुआ दामन
तमन्ना आंसुओं से दिल का हर इक दाग़ धोती है
पिला कर खून ए दिल जिस को कभी नाज़ों से पाला था
वो हसरत अब भी दिल में एक काँटा सा चुभोती है
महक देने लगी है अब ये सड़ती लाश हसरत की
अबस "मुमताज़" ये बार ए गरां तू दिल पे ढोती
है
शब् ए तारीक-अँधेरी रात, गरां-भारी, दर्द आलूद-दर्द
में सना हुआ, खिज़ां-पतझड़,
तर्क ए उल्फ़त-प्यार का त्याग, क़तरे- बूँदें, पैहम-लगातार, अबस-बेकार, बार ए गराँ- भारी
बोझ
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