हर तरफ़ शोर है, हर तरफ़ है फ़ुगां
हर तरफ़ शोर है , हर तरफ़ है फ़ुगां हर बशर आजकल महव ए ग़म है यहाँ बेहिसी नाखुदाओं की बरबाद कुन ये तलातुम , ये टूटी हुई कश्तियाँ लुट रहा है चमन , जल रहे हैं समन दूर से देखता है खड़ा बाग़बाँ तूल सहरा का , और आबले पाँव के दूर तक कोई साया , न है सायबाँ इक तमाशा है "मुमताज़" हर ज़िन्दगी और तमाशाई अखबार की सुर्ख़ियाँ फ़ुगां-रुदन , बशर- इंसान , महव ए ग़म-ग़म में डूबा हुआ , बेहिसी-एहसास न होना , नाखुदाओं की- नाविकों की , बरबाद कुन-बरबाद करने वाली , तलातुम- तूफ़ान , कश्तियाँ-नावें , समन-एक प्रकार का पेड़ , तूल-लम्बाई , सहरा-मरुस्थल , आबले-छाले