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Showing posts from February 16, 2017

हर तरफ़ शोर है, हर तरफ़ है फ़ुगां

हर तरफ़ शोर है , हर तरफ़ है फ़ुगां हर बशर आजकल महव ए ग़म है यहाँ बेहिसी नाखुदाओं की बरबाद कुन ये तलातुम , ये टूटी हुई कश्तियाँ लुट रहा है चमन , जल रहे हैं समन दूर से देखता है खड़ा बाग़बाँ तूल सहरा का , और आबले पाँव के दूर तक कोई साया , न है सायबाँ इक तमाशा है "मुमताज़" हर ज़िन्दगी और तमाशाई अखबार की सुर्ख़ियाँ फ़ुगां-रुदन , बशर- इंसान , महव ए ग़म-ग़म में डूबा हुआ , बेहिसी-एहसास न होना , नाखुदाओं की- नाविकों की , बरबाद कुन-बरबाद करने वाली , तलातुम- तूफ़ान , कश्तियाँ-नावें , समन-एक प्रकार का पेड़ , तूल-लम्बाई , सहरा-मरुस्थल , आबले-छाले  

लग गई किस की नज़र अपने वतन को यारो

कर दिया किस ने जुदा गंग-ओ-जमन को यारो लग गई किस की नज़र अपने वतन को यारो हर तरफ़ शोर है , हर सिम्त है नफ़रत का धुआँ ज़िन्दगी रोती है इस दौर-ए-फ़ितन को यारो मुंतशिर जिस्म के टुकड़े , वो क़यामत का समाँ और लाशें जो तरसती हैं कफ़न को यारो जुस्तजू में वो भटकती हुई बूढ़ी आँखें कौन अब देगा जवाब इनकी थकन को यारो बुलबुलें जलती हैं , गुल जलते हैं , जलते हैं शजर आग कैसी ये लगी अपने वतन को यारो कोई किरदार न इफ़कार , तसव्वर है न ख़्वाब दीमकें चाट गईं फ़िक्र-ओ-सुख़न को यारो दीन-ओ-ईमान से भटके हुए “ मुमताज़ ” ये लोग भूल जो बैठे हैं माँ-बाप-बहन को यारो 

हैरत से देखता है अभी आसमाँ मुझे

परवाज़ अब के जो है मिली बेतकाँ मुझे हैरत से देखता है अभी आसमाँ मुझे झुक कर उसी मक़ाम पे रख दूं जबीन ए शौक़ मिल जाए तेरा नक्श ए कफ़ ए पा जहाँ मुझे पर काटने थे जब , तो रिहा फिर किया ही क्यूँ गुफ़्तार छीननी थी , तो क्यूँ दी जुबां मुझे इस जुस्तजू में अब मैं उफ़क़ तक तो आ गई ले जाए और तेरा तअक्क़ुब कहाँ मुझे कब तक मुझे मिटाता रहेगा मेरा जुनूँ लिक्खेगी कितनी बार मेरी दास्ताँ मुझे होंटों तक आ के फूटा पियाला हज़ार बार क़िस्मत का ये मिज़ाज गरां है गरां मुझे खुशियाँ मिलीं , तो वो भी मिलीं मुझ को बेहिसाब ग़म भी मिला , तो वो भी मिला बेकराँ मुझे " मुमताज़" गम हूँ कब से मैं राहों के तूल में कब से पुकारता है तेरा आस्तां मुझे परवाज़-उड़ान , बेतकां-न थकने वाली , मक़ाम-जगह , जबीन ए शौक़-प्यार का माथा , नक्श ए कफ़ ए पा-पाँव का निशान , गुफ़्तार-बात करने की क्षमता , जुस्तजू-खोज , उफ़क़-क्षितिज , तअक्क़ुब-पीछा करना , जुनूँ-पागलपन , दास्ताँ-कहानी , गरां-भारी , बेकराँ-अनंत , तूल-लम्बाई , आस्तां-चौखट  

कहीं मुझे मिटा न दें ये साअतें क़रार की

खिज़ाँ की रुत गुज़र गई , लो आई रुत बहार की कहीं मुझे मिटा न दें ये साअतें क़रार की हमें हमारे हाफ़िज़े से भी गिले हज़ार हैं है दिल पे नक्श आज तक मोहब्बत एक बार की कभी तो हम भी पाएंगे रिहाई दिल की क़ैद से कहीं तो होंगी ख़त्म भी हुदूद इस हिसार की झुलस रहा है ज़हन भी , कि जल रही है रूह भी ज़रा ज़रा सी आंच है अभी भी उस शरार की जो चल दिए तो चल दिए , पलट के देखते भी क्या उस एक फ़ैसले पे हम ने ज़िन्दगी निसार की ज़रा तो कशमकश मिटे , सुना भी दो वो फ़ैसला झुकी हुई है अब तलक निगाह शर्मसार की मोहब्बतों का कारवां तो कब का जा चुका मगर नज़र पे गर्द है जमी अभी तलक ग़ुबार की दमक रहा है तन बदन , चमक रही है रूह तक हैं "नाज़ाँ" ये तजल्लियां उसी बुझे शरार की खिज़ां-पतझड़ , साअतें-घड़ियाँ , हाफ़िज़े से-स्मृति से , गिले-शिकायतें , हुदूद-सीमाएं , हिसार-दायरा , ज़हन-मस्तिष्क , रूह-आत्मा , शरार-अंगारा , शर्मसार-लज्जित , तजल्लियां-झिलमिलाहट 

अबके तो दिल पे तीर चला है कमाल का

एक सिलसिला अजीब है जारी क़िताल का अबके तो दिल पे तीर चला है कमाल का है दर्द लाजवाब , बदन टूटता है अब दिल पर सुरूर छाया है अब तक विसाल का ये रंग , ये निखार , ये ताबानियाँ , ये हुस्न चेहरे पे अक्स पड़ता है उसके जमाल का हो सकता है ज़मीन सिमट जाए इक जगह रिश्ता जुनूब से जो बना है शुमाल का मर्ज़ी है क्या नुजूम की , ख़ुर्शीद-ओ-माह की “ मुमताज़ ” कुछ बता दे नतीजा तो फ़ाल का क़िताल – क़त्ल-ए-आम , विसाल – मिलन , ताबानियाँ – चमक , जमाल – सुंदरता , जुनूब – दक्षिण , शुमाल – उत्तर , नुजूम – सितारे , ख़ुर्शीद-ओ-माह – सूरज और चाँद , फ़ाल – भविष्यफल 

अबके तो दिल पे तीर चला है कमाल का

एक सिलसिला अजीब है जारी क़िताल का अबके तो दिल पे तीर चला है कमाल का है दर्द लाजवाब , बदन टूटता है अब दिल पर सुरूर छाया है अब तक विसाल का ये रंग , ये निखार , ये ताबानियाँ , ये हुस्न चेहरे पे अक्स पड़ता है उसके जमाल का हो सकता है ज़मीन सिमट जाए इक जगह रिश्ता जुनूब से जो बना है शुमाल का मर्ज़ी है क्या नुजूम की , ख़ुर्शीद-ओ-माह की “ मुमताज़ ” कुछ बता दे नतीजा तो फ़ाल का क़िताल – क़त्ल-ए-आम , विसाल – मिलन , ताबानियाँ – चमक , जमाल – सुंदरता , जुनूब – दक्षिण , शुमाल – उत्तर , नुजूम – सितारे , ख़ुर्शीद-ओ-माह – सूरज और चाँद , फ़ाल – भविष्यफल