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Showing posts from July 12, 2018

नया साल

कारगाह-ए-यौम-ए-नौ का खुल रहा है पहला बाब सुबह की पेशानी पर चुनता है अफ़शाँ आफ़ताब जाग उठी है लेती है अंगड़ाइयाँ सुबह-ए-ख़िराम अपने अपने काम पर सब चल दिये हैं ख़ास-ओ-आम अपनी अपनी फ़िक्र-ओ-फ़न में हौसले महलूल हैं बूढ़े , बच्चे , मर्द-ओ-ज़न सब काम में मशग़ूल हैं मर गया इक साल और पैदा हुआ है एक साल इक तरफ़ माज़ी का ग़म है , इक तरफ़ है जश्न-ए-हाल चल पड़ी फिर ज़िन्दगी रंगीं रिदा ओढ़े हुए कामरानी की सुरीली सी सदा ओढ़े हुए आरज़ूओं के लबों पर फिर तबस्सुम खिल उठा जाग उठा अंगड़ाइयाँ ले कर के , मुस्तक़बिल उठा हसरतें मचली हैं फिर सब के लबों पर है दुआ काश अब के साल सच हो जाए सब सोचा हुआ मैं भी करती हूँ दुआएँ दोस्तों के वास्ते या ख़ुदा हमवार कर दे हर किसी के रास्ते हर किसी को दे ख़ुशी , हर एक की हसरत निकाल ले के रहमत का ख़ज़ाना आए नौ मौलूद साल    

लालच

नहीं है बेसबब ये आबिद-ए-मक़सूर का लालच हमें ख़ौफ़-ए-ख़ुदा है , शेख़ को है हूर का लालच ये ग़ैरों की क़यादत , ये सियासी पल्टियाँ इन की इन्हें हर दम रहा है मुर्ग़ी-ए-तंदूर का लालच हटाओ ऐ मियाँ , बस माल आता है तो आने दो हमेशा बढ़ता रहता है दिल-ए-मसरूर का लालच कभी आँखों से ज़ाहिर है हवस की काइयाँ गीरी कभी दिल में निहाँ है बादा-ए-अंगूर का लालच

तड़प को हमनवा, रूह-ओ-बतन को कर्बला कर लो

तड़प को हमनवा , रूह-ओ-बतन को कर्बला कर लो ज़रा कुछ देर को माज़ी से भी कुछ सिलसिला कर लो इबादत नामुकम्मल है अधूरा है हर इक सजदा असास-ए-ज़ह्न-ओ-दिल को भी न जब तक मुब्तिला कर लो थकन को पाँव की बेड़ी बना लेने से क्या होगा सफ़र आसान हो जाएगा , थोड़ा हौसला कर लो यही तनहाई तुम को ले के फिर जाएगी मंज़िल तक जुनूँ को राहबर कर लो , ख़ुदी को क़ाफ़िला कर लो बलन्दी भी झुकेगी हौसले के सामने बेशक जो ख़ू परवाज़ को , काविश को अपना मशग़ला कर लो सुलग उट्ठे हर इक एहसास हर इक ज़ख़्म खिल उट्ठे अगर अपनी तमन्नाओं से भी कुछ सिलसिला कर लो सियाही जो निगल जाए सरासर रौशनी को भी तो फिर हक़ है कहाँ बातिल है क्या ख़ुद फ़ैसला कर लो ज़माने भर से नालाँ हो , शिकायत है ख़ुदा से भी कभी “ मुमताज़ ” अपने आप से भी तो गिला कर लो