नया साल
कारगाह-ए-यौम-ए-नौ का खुल रहा है पहला बाब सुबह की पेशानी पर चुनता है अफ़शाँ आफ़ताब जाग उठी है लेती है अंगड़ाइयाँ सुबह-ए-ख़िराम अपने अपने काम पर सब चल दिये हैं ख़ास-ओ-आम अपनी अपनी फ़िक्र-ओ-फ़न में हौसले महलूल हैं बूढ़े , बच्चे , मर्द-ओ-ज़न सब काम में मशग़ूल हैं मर गया इक साल और पैदा हुआ है एक साल इक तरफ़ माज़ी का ग़म है , इक तरफ़ है जश्न-ए-हाल चल पड़ी फिर ज़िन्दगी रंगीं रिदा ओढ़े हुए कामरानी की सुरीली सी सदा ओढ़े हुए आरज़ूओं के लबों पर फिर तबस्सुम खिल उठा जाग उठा अंगड़ाइयाँ ले कर के , मुस्तक़बिल उठा हसरतें मचली हैं फिर सब के लबों पर है दुआ काश अब के साल सच हो जाए सब सोचा हुआ मैं भी करती हूँ दुआएँ दोस्तों के वास्ते या ख़ुदा हमवार कर दे हर किसी के रास्ते हर किसी को दे ख़ुशी , हर एक की हसरत निकाल ले के रहमत का ख़ज़ाना आए नौ मौलूद साल