तश्नगी को तो सराबों से भी छल सकते थे
तश्नगी को तो सराबों से भी छल सकते थे इक इनायत से मेरे ख़्वाब बहल सकते थे तू ने चाहा ही नहीं वरना कभी तो जानां मेरे टूटे हुए अरमाँ भी निकल सकते थे तुम को जाना था किसी और ही जानिब , माना दो क़दम फिर भी मेरे साथ तो चल सकते थे काविशों में ही कहीं कोई कमी थी वरना ये इरादे मेरी क़िस्मत भी बदल सकते थे रास आ जाता अगर हम को अना का सौदा ख़्वाब आँखों के हक़ीक़त में भी ढल सकते थे हम को अपनी जो अना का न सहारा मिलता लड़खड़ाए थे क़दम यूँ कि फिसल सकते थे इस क़दर सर्द न होती जो मेरे दिल की फ़िज़ा आरज़ूओं के ये अशजार भी फल सकते थे ये तो अच्छा ही हुआ बुझ गई एहसास की आग वरना आँखों में सजे ख़्वाब भी जल सकते थे हार बैठे थे तुम्हीं हौसला इक लग़्ज़िश में हम तो "मुमताज़" फिसल कर भी सँभल सकते थे tashnagi ko to saraaboN se bhi chhal sakte the ik inaayat se mere khwaab bahal sakte the tu ne chaahaa hi nahiN warna kabhi to jaanaaN mere toote hue armaaN bhi nikal sakte the tum ko jaana tha kisi aur hi jaanib maanaa do qadam phir bhi mere saath ...