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Showing posts from November 28, 2018

ज़हन-ए-बेहिस को जगा दे वो तराना चाहिए

ज़हन-ए-बेहिस को जगा दे वो तराना चाहिए जीत का इक ख़्वाब आँखों में सजाना चाहिए दिल के सोने को बनाना है जो कुंदन , तो इसे आतिश-ए-जहद-ए-मुसलसल में तपाना चाहिए रंज हो या उल्फ़तें हों , हसरतें हों या जुनूँ कोई भी जज़्बा हो लेकिन वालेहाना चाहिए पेट की आतिश में जल जाता है हर ग़म का निशाँ ज़िन्दगी कहती है , मुझ को आब-ओ-दाना चाहिए दिल तही , आँखें तही , दामन तही , लेकिन मियाँ आरज़ूओं को तो क़ारूँ का ख़ज़ाना चाहिए अक़्ल कहती है , क़नाअत कर लूँ अपने हाल पर और बज़िद है दिल , उसे सारा ज़माना चाहिए रफ़्ता रफ़्ता हर ख़ुशी “मुमताज़” रुख़सत हो गई अब तो जीने के लिए कोई बहाना चाहिए आतिश-ए-जहद-ए-मुसलसल - लगातार जद्द-ओ-जहद की आग, आब-ओ-दाना - दाना -पानी, क़नाअत - संतोष, बज़िद - ज़िद पर आमादा, रफ़्ता रफ़्ता - धीरे-धीरे, रुख़सत - विदा zahn-e-behis ko jagaa de wo taraana chaahiye jeet ka ik khwaab aankhoN meN sajaana chaahiye dil ke sone ko banaana hai jo kundan, to ise aatish-e-jahd-e-musalsal meN tapaana chaahiye ranj ho ya ulfateN hoN, hasrateN hoN ya junooN koi bhi jazba h