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Showing posts from March 7, 2017

क़ल्ब में रख ले निगाहों में छुपा ले मुझ को

क़ल्ब  में  रख  ले  निगाहों  में  छुपा  ले  मुझ  को टूटी  फूटी  हूँ ,  बिखरने  से  बचा  ले  मुझ  को राह  दुश्वार  है , और  दूर  बहुत  है  मंज़िल तंग  करते  हैं  बहुत  पाँव  के  छाले मुझ  को मैं  हूँ  तक़दीर की  क़ैदी , तू  अगर  चाहे  तो मेरे  हाथों  की  लकीरों  से  चुरा  ले  मुझ  को रोज़  लेती  हूँ  जनम ,  टूट  के  फिर  जुडती  हूँ ज़िन्दगी  रोज़  नए  रूप  में  ढाले  मुझ  को आज  तक  आ  न  सका  नज़रें  बदलने  का  हुनर यूँ  तो  आते  हैं  कई  ढंग  निराले  मुझ  को सतह  ए  आब  पे  मिलते  नहीं  नायाब  गोहर मेरा  किरदार  समझ  देखने  वाले  मुझ  को चार  सू  बिखरी  है  ता  हद्द  ए  नज़र  तारीकी जल  के  दिल  देता  है  बरसों  से  उजाले  मुझ  को इतना  बेरब्त  रहा  तू  तो  मुझे  खो  देगा रूठ  जाऊं  तो  कभी  आ  के  मना  ले  मुझ  को फ़ासलों  को  भी  कोई  राह  मिटा  सकती  है ख़ुद  में  महसूस  तो  कर  ढूँढने  वाले  मुझ  को जब  कभी  दिल  के  दरीचे  को  खुला  छोडूं  मैं तीरगी  दिल  के  उजालों  से  चुरा  ले  मुझ  को एक  दिन  आएगा , क़ीमत  मेरी  बढ़ 

कभी साया, कभी सहरा, कभी ख़ुशियाँ, कभी मातम

कभी साया , कभी सहरा , कभी ख़ुशियाँ , कभी मातम हयात-ए-रंग-ए-सद दिखलाएगी अब कौन सा मौसम गुज़र जाएँगे दुनिया से , मगर कुछ इस अदा से हम कि रह जाए ज़माने में हमारा बाँकपन दायम चले हो नापने सहरा की वुसअत जो बरहना पा ज़रा छालों से पूछो तो तपिश का दर्द का आलम अभी लहरों से लड़ना है , समंदर पार करना है शिकस्ता नाव , ये तूफ़ाँ के तेवर , और हवा बरहम हमें अपने मुक़द्दर से शिकायत तो नहीं लेकिन करम जब याद तेरे आए आँखों से गिरी शबनम हयात-ए-बेकराँ को रब्त था सीमाब से शायद इसे हर लम्हा थी इक बेक़रारी रोज़-ओ-शब पैहम अगर “ मुमताज़ ” दावा है सफ़र में साथ चलने का तो पहले देख लो राहों के ख़म पेचीदा-ओ-पैहम हयात-ए-रंग-ए-सद – सौ रंगों की ज़िन्दगी , दायम – हमेशा , वुसअत – फैलाव , बरहना पा – नंगे पाँव , शिकस्ता – टूटी फूटी , बरहम – नाराज़ , हयात-ए-बेकराँ – बहुत लंबी ज़िन्दगी , रब्त – संबंध , सीमाब – पारा , रोज़-ओ-शब – दिन और रात , पैहम – लगातार , ख़म – मोड , पेचीदा-ओ-पैहम – घुमावदार और लगातार 

आज फिर ख़ुद को समेटूँ सोच को परवाज़ दूँ

आज फिर ख़ुद को समेटूँ सोच को परवाज़ दूँ ज़िन्दगी को मोसीक़ी दूँ फिर नया इक साज़ दूँ आज फिर आज़ाद कर दूँ अपनी हर तख़ईल को और तसव्वर के सफ़र को इक नया आग़ाज़ दूँ हर तड़प के साथ आ जाए ये आलम रक़्स में दिल के टुकड़ों को तड़पने का नया अंदाज़ दूँ अपनी हस्ती को जफ़ाओं पर तेरी कर दूँ निसार आ , कि तेरी बेरुख़ी को और भी ऐज़ाज़ दूँ तू कि ऐ मग़रूर फिर राहों पे अपनी गामज़न मैं कि ख़्वाबों के भँवर से फिर तुझे आवाज़ दूँ हर इरादा , हर तमन्ना , हर ख़ुशी तो लुट चुकी क्या तेरी ख़ातिर करूँ मैं , क्या तुझे “ मुमताज़ ” दूँ मोसीक़ी – संगीत , तख़ईल – विचार शीलता , तसव्वर – कल्पना , आग़ाज़ – शुरुआत , आलम – ब्रह्माण्ड , रक़्स – नाच , जफ़ा – बेरुख़ी , निसार – निछावर , ऐज़ाज़ – सम्मान , मग़रूर – घमंडी , गामज़न – चलना 

सर-ए-महफ़िल सितम का तेरे चर्चा कर दिया होता

सर-ए-महफ़िल सितम का तेरे चर्चा कर दिया होता मेरी दीवानगी ने तुझ को रुसवा कर दिया होता इसी दिल की लगी से राख दुनिया हो गई होती इसी दिल की लगी ने हश्र बरपा कर दिया होता गुज़र कर दर्द हद से कुछ तो हल्का हो गया होता तुम्हारी बेरुख़ी ने दिल का चारा कर दिया होता है एहसाँ हम ने आँखों में संभाला है इन्हें वर्ना समंदर को मेरे अश्कों को क़तरा कर दिया होता निकालने को तो इक ये आरज़ू मेरी निकल जाती तमन्नाओं ने फिर दुश्वार जीना कर दिया होता ख़ुशी से मर भी हम जाते , ख़ुशी में जी भी हम उठते तुम्हारी इक नज़र ने गर इशारा कर दिया होता समाई थी जो वो “ मुमताज़ ” सारी उम्र इक शब में उसी इक रात ने फिर मुझ को तन्हा कर दिया होता चारा – इलाज , क़तरा – बूंद 

मैं...

मैं मुमताज़ हूँ। मैं एक लेखिका , गायिका और पेंटर हूँ। हालाँकि गायकी अब मैं ने छोड़ दी है लेकिन लेखन और पेंटिंग मेरा जुनून हैं , जिन्हें हासिल करने के लिए मैं ने क्या क्या संघर्ष नहीं किया। कितनी ही बार क़लम मेरे हाथ से छूटा होगा , कितनी ही बार मेरे ख़याल मुझ से रूठे होंगे और कितनी ही बार मेरे ब्रुश मुझे अलविदा कह गए होंगे , और जब जब मेरी रचनात्मकता मुझ से रूठ गई , मेरा दम घुटने लगा और मैं उसे मनाने में जुट गई। ज़िन्दगी की राहें मेरे लिए कभी भी आसान नहीं थीं। जाने कितने पेच-ओ-ख़म थे इन राहों में , कैसे कैसे उतार चढ़ाव थे। ऐसा नहीं कि मेरी हिम्मत कभी टूटी नहीं , हिम्मत भी टूटी , बार बार इरादे भी कमजोर हुए लेकिन मेरे तख़्लीक़ी ज़हन ने मुझे ख़ुद को समेटने की और फिर उठ खड़ा होने की ताक़त दी। एक बात और बताऊँ ? कभी किसी बच्चे को देखना , कितना बेफ़िक्र , आत्मविश्वास से कैसा भरा हुआ। दुनिया की हर चीज़ को हैरत से देखता है , सब कुछ जानना चाहता है। छोटी छोटी बातों पर ख़ुश हो जाता है , अपनी हर ख़्वाहिश को पूरा कर के ही दम लेता है। हम सब जब अपनी ज़िन्दगी का सफ़र शुरू करते हैं तो हम वो बच्चा ही तो होते ह