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Showing posts from September, 2018

आँखों में तीर बातों में ख़ंजर लिए हुए

आँखों में तीर बातों में ख़ंजर लिए हुए बैठा है कोई शिकवों का दफ़्तर लिए हुए शीशागरी का शौक़ मुझे जब से हुआ है दुनिया है अपने हाथों में पत्थर लिए हुए जाने कहाँ कहाँ से गुज़रते रहे हैं हम आवारगी फिरी हमें दर दर लिए हुए लगता है चूम आई है आरिज़ बहार के आई नसीम-ए-सुबह जो अंबर लिए हुए क्या क्या सवाल लरज़ाँ थे उस की निगाह में लौट आए हम वो आख़िरी मंज़र लिए हुए दिल में धड़कते प्यार की अब वुसअतें न पूछ क़तरा है बेक़रार समंदर लिए हुए “मुमताज़” संग रेज़े भी अब क़ीमती हुए बैठे हैं हम निगाहों में गौहर लिए हुए

झूटी बातों पर रोया सच

झूटी   बातों   पर   रोया   सच हर   बाज़ी   में   जब   हारा   सच कुछ   तो   मुलम्मा   इस   पे   चढाओ बेक़ीमत   है   ये   सादा   सच झूठ   ने   जब   से   पहनी   सफेदी छुपता   फिरता   है   काला   सच अब   है   हुकूमत   झूठ   की   लोगो दर   दर   भटके   बंजारा   सच सच   सुनने   की   ताब   न   थी   तो क्यूँ   आख़िर   तुम   ने   पूछा   सच बन   जाए   जो   वजह   ए तबाही " बेमक़सद   है   फिर   ऐसा   सच" मिसरा   क्या   "मुमताज़ " मिला   है हम   ने   लफ़्ज़ों   में   ढाला   सच jhooti baatoN par roya sach har baazi meN jab haara sach kuchh to mulamma is pe chadhaao beqeemat hai ye saada sach jhoot ne jab se pahni safedi chhupta phirta hai kalaa sach ab hai hukoomat jhoot ki logo dar dar bhatke banjaara sach sach sunne ki taab na thi to kyuN aakhir tum ne poochha sach ban jaae jo wajh e tabaahi "bemaqsad hai phir aisa sach" misra kya "Mumtaz" mila hai ham ne lafzoN meN dhaala sach

रेग-ए-रवाँ

सुना था ये कभी मैं ने मोहब्बत का जो दरिया है कभी सूखा नहीं करता मगर ये सच नहीं यारो कभी ऐसा भी होता है मोहब्बत का ये दरिया धीरे धीरे सूख जाता है वफाओं की हरारत से जफाओं की तमाज़त से अदाकारी की शिद्दत से रियाकारी की जिद्दत से कहीं दिल में कोई रेग-ए-रवाँ तशकील पाता है

उम्मीद का मेरे दिल पर हिसार है कि नहीं

उम्मीद का मेरे दिल पर हिसार है कि नहीं नदी भी कोई सराबों के पार है कि नहीं वो कशमकश में है , मैं भी इसी ख़याल में हूँ सफ़र के तूल में राह ए फ़रार है कि नहीं मैं जान देने को दे दूँ , प ये तो वाज़ेह कर तेरे निसारों में मेरा शुमार है कि नहीं मुझे तो ज़ख़्मी अना का सुरूर है कब से शराब-ए-ज़ात का तुझ को ख़ुमार है कि नहीं जो तुझ को रहना है दिल में तो सोच ले पहले ज़मीन ए जंग तुझे साज़गार है कि नहीं मैं ढूँढती हूँ ग़ुरूर-ए-अना की आँखों में मेरे क़लम में अभी तक वो धार है कि नहीं यही सवाल सताता है दिल को हर लम्हा मेरी तलाश में अब वो बहार है कि नहीं चलेगा सिलसिला कब तक ये आज़माइश का मेरी वफा का तुझे ऐतबार है कि नहीं हम आ तो पहुँचे मगर सोचते हैं अब "मुमताज़" जहाँ पहुँचना था ये वो दयार है कि नहीं

कोई पूछे जहाँ में क्या देखा

कोई पूछे जहाँ में क्या देखा देखा जो कुछ वो ख़्वाब सा देखा जब भी निकले तलाश में उस की दूर तक कोई नक़्श ए पा देखा अपने अंदर तलाश की जब भी इक जहाँ दिल में भी छुपा देखा हो के मजबूर दिल के हाथों से उस को सब की नज़र बचा देखा कब तलक होगी आज़माइश ये अब तो हर एक ज़ुल्म ढा देखा अब तो नासेह भी ये नहीं कहते झूठ का हश्र बस बुरा देखा तीरगी तो किसी तरह न मिटी हम ने दिल का जहाँ जला देखा खाक का एक बुत हूँ मैं "मुमताज़" तू ने ऐ यार मुझ में क्या देखा

अब भी एहसास कोई ख़्वाबज़दा है मुझ में

अब   भी   एहसास   कोई   ख़्वाबज़दा   है   मुझ   में कब   से   मैं   ढूँढ रही   हूँ   के   ये   क्या   है   मुझ   में मुन्तज़िर   कब   से   ये   ख़ामोश ख़ला है   मुझ   में कोई   दर   है   जो   बड़ी   देर   से   वा   है   मुझ   में इक   ज़रा   चोट   लगेगी   तो   उबल   उट्ठेगा एक   मुद्दत   से   तलातुम   ये   रुका   है   मुझ   में फिर   से   फैला   है   मेरे   दिल   में   अजब   सा   ये   सुकूत फिर से   तूफ़ान   कोई   जाग   रहा   है   मुझ   में कोई   आहट   है   के   दस्तक   है   के   फ़रियाद   कोई कैसा   ये   शोर   सा   है , कुछ   तो   बचा   है   मुझ   में ये   चमक   जो   मेरे   शे ' रों   में   नज़र   आती   है गर्द   आलूद   सितारा   है ,   दबा   है   मुझ   में कितना   कमज़ोर   है   ये   चार   अनासिर   का   मकान " आग   है , पानी   है , मिट्टी   है , हवा   है   मुझ   में" जब   भी   मैं   उतरी   हूँ   ख़ुद   में   तो   गोहर   लाई   हूँ इक   ख़ज़ाना   है   जो   ' मुमताज़ ' दबा   है   मुझ   में   ab bhi ehsaas koi khwaabzad

कभी सरापा इनायत, कभी बला होना

कभी सरापा इनायत , कभी बला होना ये किस से आप ने सीखा है बेवफ़ा होना उसे सफ़र की थकन ने मिटा दिया लेकिन न रास आया हमें भी तो रास्ता होना दिल-ओ-दिमाग़ की परतें उधेड़ देता है दिल-ओ-दिमाग़ की दुनिया का क्या से क्या होना सितम ज़रीफ़ ये तेवर , ये क़ातिलाना अदा कभी हज़ार गुज़ारिश , कभी ख़फ़ा होना वो इक अजीब सा नश्शा वो मीठी मीठी तड़प वो पहली बार मोहब्बत से आशना होना ख़ुमार इस में भी "मुमताज़" तुम को आएगा किसी ग़रीब का इक बार आसरा होना

भड़कना, कांपना, शो'ले उगलना सीख जाएगा

भड़कना , कांपना , शो ' ले   उगलना   सीख   जाएगा चराग़ ए   रहगुज़र   तूफ़ाँ में   जलना   सीख   जाएगा नया   शौक़   ए   सियासत   है , ज़रा   कुछ   दिन   गुज़रने   दो बहुत   ही   जल्द   वो   नज़रें   बदलना   सीख   जाएगा अभी   एहसास   की   शिद्दत   ज़रा   तडपाएगी   दिल   को अभी   टूटी   है   हसरत , हाथ   मलना   सीख   जाएगा हर   इक   अरमान   को   मंज़िल   मिले   ये   क्या   ज़रूरी   है उम्मीदों   से   भी   दिल   आख़िर   बहलना   सीख   जाएगा शनासा   रफ़्ता   रफ़्ता   मसलेहत   से   होता   जाएगा ये   दिल   फिर   आरज़ूओं   को   कुचलना   सीख   जाएगा ये   बेहतर   है   के   बच्चे   को   ज़मीं   पर   छोड़   दें   अब   हम अगर   कुछ   लडखडाया   भी   तो   चलना   सीख   जाएगा छुपा   है   दिल   में   जो   आतिश फ़िशां , इक   दिन   तो   फूटेगा रुको   "मुमताज़" ये   लावा   उबलना   सीख   जाएगा   bhadakna, kaanpna, sho'le ubalna seekh jaaega charaaghe rehguzar toofaaN meN jalna seekh jaaega naya shauq e siyaasat hai, zara kuchh din guzarne do bah

जो मुन्तज़िर हैं उम्मीदें , उन्हें बताया जाय

जो   मुन्तज़िर हैं   उम्मीदें , उन्हें   बताया   जाय ये   जलता   शहर   ए वफ़ा   किस   तरह   बचाया   जाय सजाओ   लाख   तबस्सुम , मगर   नुमायाँ   रहे जिगर   का   दाग़   भला   कैसे   अब   छुपाया   जाय जो   कायनात   ए   दिल   ओ   जाँ को   ज़ेर   ओ   बम   कर   दे कुछ   इस   तरह   से   कोई   हश्र   अब   उठाया   जाय मकान   ए   दिल   के   सभी   रोज़न   ओ   दर   बंद   करो अब   आरज़ू   को   यूँ   ही   दर   ब दर   फिराया   जाय अजीब   सी   ये   कशाकश   है   दिल   की   राहों   में " के   आगे   जा   न   सकूं   लौट   कर   न   आया   जाय " मैं   हँसना   चाहूँ   तो   ये   छीन   ले   लबों   से   हंसी शिकस्ता   ज़ात   से   "मुमताज़" क्या   निभाया   जाय jo muntazir haiN ummeedeN, unheN bataaya jaay ye jalta shehr e wafaa kis tarah bachaaya jaay sajaao laakh tabassum, magar numaayaaN rahe jigar ka daagh bhala kaise ab chhupaaya jaay jo kaaynaat e dil o jaaN ko zer o bam kar de kuchh is tarah se koi hashr ab uthaaya jaay makaan e dil k

दे कर सदाएं बारहा , छुप कर वो मुस्कराए क्यूँ

दे   कर   सदाएं   बारहा , छुप   कर   वो   मुस्कराए   क्यूँ निस्बत   नहीं   कोई   तो   फिर , हम   से   नज़र   चुराए   क्यूँ रख   आए   उस   के   दर   पे   हम   सब   निस्बतें , सारी ख़ुशी वो   अपने   इल्तेफात   का   एहसान   भी   जताए   क्यूँ जाँबारी का   जूनून   तो   लाज़िम है   फ़र्द फ़र्द   में रस्ता दिखाए   जो   हमें   सर   भी   वही   कटाए   क्यूँ कैसी   ये   जुस्तजू   सी   है   उस   दश्त   ए ख़ार ख़ार   में मजरूह   बारहा   हुआ , दिल   फिर   वहीँ   पे   जाए   क्यूँ तारीकी   जब   मिटी   तो   फिर   ज़ाहिर   हुआ   हर   इक   शिगाफ़ मेरी   शिकस्ता   रूह   में   इतने   दिए   जलाए   क्यूँ अब   के   जुनूँ ने   तोड़   दीं , इश्क़   ओ   वफ़ा   की   बेड़ियाँ रखा   ही   क्या   है   अब   यहाँ , अब   वो   यहाँ   पे   आए   क्यूँ आया   अना   की   ज़द   में   तो   हर   जज़्बा   जाँ ब हक़ हुआ बैठे   हैं   फिर   मुंडेर   पे   तन्हाइयों   के   साए   क्यूँ रग़बत   न   कोई   वास्ता , दर   है   न   कोई   आस्तां " बैठे   हैं   रहगुज़र