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ग़ज़ल - दो जागी सोई हुई सी आँखों का ख़्वाब था वो

  दो जागी सोई हुई सी आँखों का ख़्वाब था वो मेरी तमन्नाओं के फ़ुसूँ का जवाब था वो DO JAAGI SOI HUI SI AANKHO'N KA KHWAAB THA WO MERI TAMANNAO'N KE FUSOO'N KA JAWAAB THA WO हर इक अँधेरे का , रौशनी का हिजाब था वो हमारी हस्ती के राज़-ए-पिन्हाँ का बाब था वो HAR IK ANDHERE KA RAUSHNI KA HIJAAB THA WO HAMAARI HASTI KE RAAZ E PINHAA'N KA BAAB THA WO अता किए थे तमाम कर्ब-ओ-मलाल दिल को जो मुझ पे नाज़िल हुआ था ऐसा अज़ाब था वो ATAA KIYE THE TAMAAM KARB O MALAAL DIL KO JO MUJH PE NAAZIL HUA THA AISA AZAAB THA WO था दिल की दुनिया की सल्तनत का वो शाहज़ादा मोहब्बतों की खुली हुई इक किताब था वो THA DIL KI DUNIYA KI SALTNAT KA WO SHAAHZAADA MOHABBATO'N KI KHULI HUI IK KITAAB THA WO क़रीबतर था , मगर रहा कितने फ़ासले पर जहान-ए-हसरत की सरज़मीं का सराब था वो QAREEB TAR THA MAGAR RAHA KITNE FAASLE PAR JAHAAN E HASRAT KI SARZAMEE'N KA SARAAB THA WO हर एक ख़्वाब-ए-फ़ुसूँ की ताबीर बन के आया हयात कितनी हसीं थी जब हमरक़ाब था वो HAR EK KHWAAB E FU