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Showing posts from 2018

अजनबी एहसास

है रात गुलाबी , सर्द हवा बेदार 1 हुआ है एक फुसूँ 2 बेचैन पलों के नरग़े 3 में मैं तनहा तनहा बैठी हूँ है ज़हन परेशाँ , बेकल दिल क्या जाने ये कैसी उलझन है खोई हूँ न जाने किस धुन में बस , जागते में भी सोई हूँ वीरान फ़ज़ा-ए-ज़हन में फिर आहट ये किसी की आती है रह रह के मुझे चौंकाती है रह रह के मुझे तडपाती है रह रह के तरब 4 के कानों में आती है न जाने किस की सदा अब आग लगी अब सर्द हुई वो आस जली वो दर्द बुझा कुछ यादें हैं   कुछ साए हैं कुछ बोलती सी तस्वीरें हैं कुछ अनजाने से बंधन हैं   कुछ अनदेखी ज़ंजीरें हैं   तन्हाई के नाज़ुक रेशम से तख़ ' ईल 5 शरारे 6 बुनती है कुछ गर्म तसव्वर लिखती है कुछ नर्म इशारे बुनती है होंटों प कभी खिंच जाती है इक नर्म तबस्सुम 7 की रेखा उंगली से ज़मीं पर खींचूँ कभी अनबोले तकल्लुम 8 की रेखा आँखों में कभी जुगनू चमकें पलकों प कभी शबनम महके जब याद की कलियाँ खिल जाएं   इक कर्ब 9 जले इक ग़म महके वो दूर उफ़क़ 10 की वादी में   सूरज ने बिखेरी है अफ़्शां 11 इस छेड़ से क्यूँ शरमाई शफ़क़ 12 सिन्द

मेरे महबूब, मेरे दोस्त, मेरी जान-ए-ग़ज़ल

मेरे महबूब , मेरे दोस्त , मेरी जान-ए-ग़ज़ल दो क़दम राह-ए-मोहब्बत में मेरे साथ भी चल दो घड़ी बैठ मेरे पास , कि मैं पढ़ लूँ ज़रा तेरी पेशानी प लिक्खा है मेरी ज़ीस्त का हल एक उम्मीद प उलझे हैं हर इक पेच से हम हौसला खोल ही देगा कभी तक़दीर के बल वक़्त की गर्द छुपा देती है हर एक निशाँ संग पर खींची लकीरें रहें कितनी भी अटल टूटे ख़्वाबों की ख़लिश 1 जान भी ले लेती है ख़्वाब दिखला के मुझे ऐ दिल-ए-बेताब न छल जी नहीं पाता है इंसान कभी बरसों में ज़िन्दगी करने को काफ़ी है कभी एक ही पल नूर और नार 2 का मैं रोज़ तमाशा देखूं ख़ूँचकाँ 3 शम्स 4 को तारीक 5 फ़िज़ा जाए निगल मार डाले न कहीं तुझ को ये तन्हाई का ज़हर दिल के वीरान अंधेरों से कभी यार निकल नौहाख़्वाँ 6 क्यूँ हुए "मुमताज़" सभी मुर्दा ख़याल मदफ़न 7 -ए-दिल में अजब कैसा ये हंगाम था कल 1- चुभन , 2- रौशनी और आग , 3- जिस से खून टपकता हो , 4- सूरज , 5- अंधेरा , 6- रोना पीटना , 7- क़ब्रिस्तान mere mehboob, mere dost, meri jaan e ghazal do qadam raah e mohabbat meN mere saath bhi chal do ghad

तमन्ना फड़फड़ा कर बुझ गई आहिस्ता आहिस्ता

तमन्ना फड़फड़ा कर बुझ गई आहिस्ता आहिस्ता जवाँ होने लगी   तश्नालबी 1   आहिस्ता   आहिस्ता न जाने दिल ने क्या देखा तेरी आँखों की जुम्बिश 2 में जली यकलख़्त 3 हसरत 4 और बुझी आहिस्ता आहिस्ता नक़ाब उलटी शफ़क़ 5 ने , शाम के रुख़ 6 पर सजा ग़ाज़ा 7 उफ़क़ 8 के हाथ पर मेहंदी रची आहिस्ता आहिस्ता बसेरा छोड़ कर जाना कहाँ आसान था इतना हुआ उम्मीद से ये दिल तही 9 आहिस्ता आहिस्ता शराब-ए-ज़िन्दगी में अब कहाँ पहले सी वो मस्ती तो लो रुख़्सत 10 हुई ये बेख़ुदी 11 आहिस्ता आहिस्ता हुआ है रफ़्ता रफ़्ता 13 इन्केशाफ़-ए-राज़-ए-हस्त-ओ-बूद 14 उठी दिल से सदा-ए-अनहदी 15   आहिस्ता   आहिस्ता हक़ीक़त है , ख़िज़ां 16 के बाद आती हैं बहारें 17 भी ज़मीन-ए-दिल हरी होने लगी आहिस्ता आहिस्ता रह-ए-तक़दीर 18 पर हम वक़्त के हमराह 19 चलते हैं गुज़रती जा रही है ज़िन्दगी आहिस्ता आहिस्ता हमीं "मुमताज़" गुज़रे बारहा 20 इस आज़माइश से कभी यकलख़्त दिल टूटा , कभी आहिस्ता आहिस्ता 1- प्यास , 2- हिलना , 3- अचानक , 4- इच्छा , 5- सुबह को आसमान पर फैलने वाली लाली , 6- चेहरा , 7- ब्लशर , 8-

नीम गुलाबी

एक गुनह बस छोटा सा , इक लग़्ज़िश 1 नीम 2 गुलाबी दिल पर दस्तक देती है इक ख़्वाहिश नीम गुलाबी लम्हा लम्हा पिघली जाती है हसरत आवारा दहके दो अंगारों की वो ताबिश 3 नीम गुलाबी पल भर में पैवस्त 4 हुई है दिल के निहाँ 5 ख़ानों 6 में बोझल बोझल पलकों की इक जुम्बिश 7 नीम गुलाबी लूट लिया बहका कर मेरी राहत का सरमाया 8 दिल ने नज़रों से मिल कर की साज़िश नीम गुलाबी सुलगा जाए जिस्म का संदल 9 , महके फ़ज़ा बातिन 10 की जलती है अब रूह 11 तलक इक आतिश 12 नीम गुलाबी भीग गया जज़्बात का जंगल , फूट पड़ी हरियाली बरसों बाद गिरी दिल पर ये बारिश नीम गुलाबी रोग है या आसेब 13 है ये , कोई तो बताए मुझ को रह रह के होती है क्यूँ इक लर्ज़िश 14   नीम गुलाबी हम भी दौलतमंद हुए , दिल ने भी ख़ज़ाना पाया वो दे कर "मुमताज़" गया इक बख़्शिश 15 नीम गुलाबी    1- लड़खड़ाहट , 2- आधी , 3-गर्मी भरी चमक , 4- घुस जाना , 5- छुपे हुए , 6- हिस्सों , 7- हिलना , 8- पूँजी , 9- चन्दन , 10- अन्तर्मन , 11- आत्मा , 12- आग , 13- भूत-प्रेत , 14- कंपन , 15- इनआम ek gunah bas chhot

बारिश

झमकता   झूमता   बरसा   है   पानी गरज   कर   हो   गए   आमादा   बादल   जंग   करने   को उतरती   आती   हैं   चांदी   की   लड़ियाँ   आसमानों   से इन्हीं   की   लय   पे   बिजली   रक्स   करती   है चमकती   है मचलती   है मचल   कर   जगमगाती   है मैं   खिड़की   पर   खड़ी   हूँ फुहारें   नर्म   नाज़ुक   सी मेरे   गालों   पे   बोसा   दे   रही   हैं और   दिल   मदहोश   होता   जा   रहा   है हवाएं   छेड़ती   हैं   ज़ुल्फ़   ए   बरहम   को ये   बारिश   कितनी   मुद्दत   बाद   आई   है ये   बारिश   आज   बरसों   बाद   आई   है jhamakta jhoomta barsa hai paani garaj kar ho gae aamaada baadal jang karne ko utarti aati haiN chaandi ki ladiyaN aasmaanoN se inhiN ki lay pe bijli raqs karti hai chamakti hai, machalti hai machal kar jagmagaati hai maiN khidki par khadi hooN phuhaareN narm nazuk si mere gaaloN pe bosa de rahi haiN aur dil madhosh hota jaa raha hai hawaaeN chhedti haiN zulf e barham ko ye baarish kitni muddat baad aai hai ye baarish aaj barsoN ba