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Showing posts from October 28, 2018

तेरी ये बेनियाज़ी फिर ज़रा बदनाम हो जाए

तेरी ये बेनियाज़ी फिर ज़रा बदनाम हो जाए मेरी महरूमियों का आज चर्चा आम हो जाए कहाँ जाए तबाही , वहशतों का हश्र फिर क्या हो मेरी किस्मत की हर साज़िश अगर नाकाम हो जाए अँधेरा है , सफ़र का कोई अंदाज़ा नहीं होता किधर का रुख़ करूँ , शायद कोई इल्हाम हो जाए हया की वो अदा अब हुस्न में पाई नहीं जाती निगाहों की तमाज़त से जो गुल अन्दाम हो जाए दर-ए-रहमत प् हर उम्मीद कब से सर-ब-सजदा है तेरी बस इक नज़र उट्ठे , हमारा काम हो जाए वफ़ा की राह में ये भी नज़ारा बारहा देखा जलें पर शौक़ के , लेकिन जुनूँ बदनाम हो जाए नज़र "मुमताज़" उठ जाए तो दुनिया जगमगा उट्ठे नज़र झुक जाए वो , तो पल के पल में शाम हो जाए   teri ye beniyaazi phir zara badnaam ho jaaey meri mahroomiyon ka aaj charcha aam ho jaaey kahaN jaaey tabaahi, wahshatoN ka hashr phir kya ho miri qismat ki har saazish agar nakaam ho jaaey andhera hai, safar ka koi andaaza nahin hota kidhar ka rukh karun, shaayad koi ilhaam ho jaaey hayaa ki wo adaa ab husn men paai nahin jaati nigaahon ki t