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ग़ज़ल - मसर्रतों की ज़मीं पर ये कैसी शबनम है

मसर्रतों की ज़मीं पर ये कैसी शबनम है ग़ुबार कैसा है सीने में , मुझ को क्या ग़म है MASARRATO'N KI ZAMEE'N PAR YE KAISI SHABNAM HAI GHUBAAR KAISA HAI SEENE ME'N, MUJH KO KYA GHAM HAI क़दम क़दम पे बिछे हैं हज़ारों ख़ार यहाँ ज़रा संभल के चलो , रौशनी अभी कम है QADAM QADAM PE BICHHE HAI'N HAZAARO'N KHAAR YAHA'N ZARA SAMBHAL KE CHALO, ROSHNI ABHI KAM HAI ज़रा जो हँसने की कोशिश की , आँख भर आई शगुफ़्ता ख़ुशियों पे महरूमियों का मौसम है ZARAA JO HANSNE KI KOSHISH KI, AANKH BHAR AAI SHAGUFTAA KHUSHIYO'N PE MEHROOMIYO'N KA MAUSAM HAI थकी थकी सी तमन्ना , उदास उदास उम्मीद बुझा बुझा सा कई दिन से दिल का आलम है THAKI THAKI SI TAMANNA, UDAAS UDAAS UMMEED BUJHA BUJHA SA KAI DIN SE DIL KA AALAM HAI जलन से तपने लगी है फ़ज़ा-ए-सहरा-ए-दिल हर एक साँस मेरी ज़िन्दगी का मातम है JALAN SE TAPNE LAGI HAI FIZAA E SEHRA E DIL HAR EK SAANS MERI ZINDGI KA MAATAM HAI खिली खिली सी हँसी पर जमी जमी सी ख़लिश तरब के ज़ख़्म पे ख़ुशफ़हमियों का मरहम है K