सेहरा है, ख़राबात हैं, इक दश्त-ए-बला, और
सेहरा है , ख़राबात हैं , इक दश्त-ए-बला , और इस शहर-ए-बयाबान में कुछ भी न बचा और इस बेजा इनायत में है क्या राज़ , बयाँ कर असरार-ए-मसीहाई में कुछ तो है छुपा और हर कोई तो मिट्टी की इबादत नहीं करता काफ़िर का ख़ुदा और है मोमिन का ख़ुदा और देखो तो ज़रा ख़ुद में कि क्या कुछ नहीं "मुमताज़" हर जिस्म में मौजूद है इक ग़ार-ए-हिरा और