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Showing posts from September 7, 2018

सेहरा है, ख़राबात हैं, इक दश्त-ए-बला, और

सेहरा है , ख़राबात हैं , इक दश्त-ए-बला , और इस शहर-ए-बयाबान में कुछ भी न बचा और इस बेजा इनायत में है क्या राज़ , बयाँ कर असरार-ए-मसीहाई में कुछ तो है छुपा और हर कोई तो मिट्टी की इबादत नहीं करता काफ़िर का ख़ुदा और है मोमिन का ख़ुदा और देखो तो ज़रा ख़ुद में कि क्या कुछ नहीं "मुमताज़" हर जिस्म में मौजूद है इक ग़ार-ए-हिरा और

अपनी ज़ात का फिर इक ज़ाविया नया देखूँ

अपनी ज़ात का फिर इक ज़ाविया नया देखूँ बुझती आग में रौशन फिर कोई शुआ देखूँ ग़ालिबन नज़र आए साफ़ साफ़ हर मंज़र असबियत का ये पर्दा अब ज़रा हटा देखूँ मैं अना का ख़ूँ कर के अब भी लौट तो आऊँ मुंतज़िर तो हो कोई , कोई दर खुला देखूँ ज़ात ओ नस्ल कुछ भी हो ख़ून लाल ही होगा तेरे रंग से अपना रंग आ मिला देखूँ कहते हैं हुकूमत को इन्क़ेलाब खाता है आग फिर ये भड़की है आज फिर मज़ा देखूँ भूक , जुर्म , दहशत का मैल है जमा इस पर खुल गई हक़ीक़त अब मैं जहाँ में क्या देखूँ अब मुझे सुना ही दे क्या है फैसला तेरा और अब कहाँ तक मैं तेरा रास्ता देखूँ मेरे अक्स में किस का अक्स ये दिखाई दे "बेख़ुदी के आलम में जब भी आईना देखूँ" बोलती निगाहों में अनगिनत फ़साने हैं ख़ुद प मैं रहूँ "नाज़ाँ" जब भी आईना देखूँ

कश्मकश

अजब सी कश्मकश में हूँ अजब सी बेक़रारी है कभी यादें , कभी सपने वो बेहिस वक़्त की साज़िश शिकस्ता हौसलों से फिर कभी परवाज़ की कोशिश चलूँ दो गाम और फिर मैं थकन से चूर हो जाऊँ इरादा ज़ेहन बाँधे जिस्म से मजबूर हो जाऊँ तमन्ना गाहे गाहे मुझ को बहकाए बहक जाऊँ दबी है कोई चिंगारी अभी दिल में दहक जाऊँ मगर फिर मस्लेहत पैरों में बेड़ी दाल देती है हमेशा सर्द दानाई जुनूँ को टाल देती है अजब सी कश्मकश में हूँ अजब सी बेक़रारी है

आबले बोए थे मैं ने , ये शजर मेरा है

आबले   बोए   थे   मैं   ने , ये   शजर   मेरा   है ज़हर   आमेज़   तमन्ना   का   समर   मेरा   है आप   ने   जेहद   ए   मोहब्बत   में   गवांया   क्या   है सर   से   पा   तक   ये   बदन , खून में   तर , मेरा   है राह   दर   राह   कई   राहें   निकल   आएंगी जो   कभी   ख़त्म   न   होगा   वो   सफ़र   मेरा   है कौन   है , खून   से   जिस   ने   हों   लिखे   अफ़साने मौत   से   आँख   लडाऊं   ये   जिगर   मेरा   है जेहन   ने   इस   को   बड़े   प्यार   से   पाला   बरसों   खून   आलूद   सही , ख्व़ाब मगर   मेरा   है शौक़   से   ढून्ढ   ले   खुद   में   तू   कहीं   अपना   वजूद तेरी   हस्ती   प्   अभी   तक   तो   असर   मेरा   है है   यहीं   दफ़्न   वो   यादों   का   खजाना   " मुमताज़ " " दर   ओ   दीवार   किसी   के   हों   ये   घर   मेरा   है " آبلے   بویۓ تھے   میں   نے , یہ   شجر   میرا   ہے زہر   آمیز   تمنا   کا   ثمر   میرا   ہے آپ   نے   جہد_محبت   میں   گوانیا   کیا   ہے سر   سے   پا   تک   یہ   بدن , خون   میں