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Showing posts from January 18, 2012

ग़ज़ल - मोहब्बतों के देवता, न अब मुझे तलाश कर

फ़ना हुईं  वो  हसरतें  वो  दर्द  खो  चूका  असर मोहब्बतों  के  देवता,  न  अब  मुझे  तलाश  कर भटक  रही  है  जुस्तजू  समा'अतें हैं  मुंतशर न  जाने  किस  की  खोज  में  है  लम्हा  लम्हा  दर  ब दर ये  खिल्वतें , ये  तीरगी , ये  शब है  तेरी  हमसफ़र इन  आरज़ी ख़यालों के  लरज़ते सायों  से  न  डर हयात ए बे  पनाह  पे  हर  इक  इलाज  बे  असर हैं  वज्द  में  अलालतें  परेशाँ हाल  चारागर बना  है  किस  ख़मीर  से  अना  का  क़ीमती क़फ़स तड़प  रही  हैं  राहतें , असीर  है  दिल  ओ  नज़र पड़ी  है  मुंह  छुपाए  अब  हर  एक  तशना आरज़ू तो  जुस्तजू  भी  थक  गई , तमाम  हो  गया  सफ़र तलातुम  इस  क़दर  उठा , ज़मीन  ए  दिल  लरज़  उठी शदीद  था  ये  ज़लज़ला , हयात  ही  गई  बिखर हर  एक  ज़र्ब ए वक़्त  से  निगारिशें  निखर  गईं हर  एक  पल  ने  डाले  हैं  निशान अपने  ज़ात  पर बस  एक  हम  हैं  और  एक  तन्हा  तन्हा  राह  है गुज़र  गया  वो  कारवां , बिछड़  गए  वो  हमसफ़र फ़ना होना= मिटना, ख़मीर= मटेरिअल, अना= अहम्, क़फ़स= पिंजरा, असीर= बंदी, तशना= प्यासी, आरज़ू= इच्छा, जुस्तजू= खोज, तमाम= ख़त्