ग़ज़ल - मोहब्बतों के देवता, न अब मुझे तलाश कर
फ़ना हुईं वो हसरतें वो दर्द खो चूका असर मोहब्बतों के देवता, न अब मुझे तलाश कर भटक रही है जुस्तजू समा'अतें हैं मुंतशर न जाने किस की खोज में है लम्हा लम्हा दर ब दर ये खिल्वतें , ये तीरगी , ये शब है तेरी हमसफ़र इन आरज़ी ख़यालों के लरज़ते सायों से न डर हयात ए बे पनाह पे हर इक इलाज बे असर हैं वज्द में अलालतें परेशाँ हाल चारागर बना है किस ख़मीर से अना का क़ीमती क़फ़स तड़प रही हैं राहतें , असीर है दिल ओ नज़र पड़ी है मुंह छुपाए अब हर एक तशना आरज़ू तो जुस्तजू भी थक गई , तमाम हो गया सफ़र तलातुम इस क़द...