जब तलक लब वज़ू नहीं करते
जब तलक लब वज़ू नहीं करते हम तेरी गुफ़्तगू नहीं करते हम अबस हा-ओ-हू नहीं करते ख़ामुशी को लहू नहीं करते ख़ुद हमारी तलाश में है तू हम तेरी जुस्तजू नहीं करते डर गए हैं शिकस्त से इतना अब कोई आरज़ू नहीं करते हर खुले ज़ख़्म में है अक्स उस का यूँ इन्हें हम रफ़ू नहीं करते ज़ख़्म भी दे , वो हाल भी पूछे ये इनायत अदू नहीं करते सारे एहसास मुंतशिर हैं अब क्या सितम रंग-ओ-बू नहीं करते दिल को इसरार जिस प है इतना हम वही गुफ़्तगू नहीं करते ख़ाक होने लगे वो मुर्दा पल अब वो “ मुमताज़ ” बू नहीं करते