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Showing posts from December 13, 2018

तमन्ना बैठी रहेगी डरी डरी कब तक

तमन्ना बैठी रहेगी डरी डरी कब तक मुझे मिटाती रहेगी मेरी ख़ुदी कब तक चलेगी साथ कहाँ तक हमारी महरूमी रहेगी वक़्त की पेशानी पर कजी कब तक गुज़र चुका है यक़ीन-ओ-गुमाँ का वो तूफ़ाँ रहेगी ज़िन्दगी इस मोड़ पर रुकी कब तक रिहा करेगा कभी तो हमें हमारा दिल हमारे हाथों में माज़ी की हथकड़ी कब तक जुनून-ए-शौक़ , मुक़द्दर का नाज़ तोड़ भी दे उड़ाती जाएगी क़िस्मत मेरी हँसी कब तक बस अब बहुत हुई रग़बत की ये अदाकारी अबस शिकस्ता बुतों की ये बन्दगी कब तक गुजरने वालों को परवाह ही कब रही आख़िर किसी का रास्ता ताकती रही गली कब तक ज़रा सा जीना है “मुमताज़” इन पलों में हमें हमारे हाथ में जाने रहे ख़ुशी कब तक कजी – टेढ़ा पन , माज़ी – भूतकाल , रग़बत – मोहब्बत , अदाकारी – अभिनय , अबस – बेकार , शिकस्ता – टूटा हुआ , बुतों – मूर्तियों , बन्दगी – पूजा تمنا بیٹھی رہیگی ڈری ڈری کب تک مجھے مٹاتی رہیگی مری خوشی کب تک چلیگی ساتھ کہاں تک ہماری محرومی رہیگی وقت کی پیشانی پر کجی کب تک گزر چکا ہے یقین و گماں کا وہ طوفاں رہیگی زندگی اس موڑ پر رکی کب تک رہا کریگا کبھی تو ہمیں ہ