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ग़ज़ल - मुझ में क्या तेरे तसव्वर के सिवा रह जाएगा

मुझ में क्या तेरे तसव्वर के सिवा रह जाएगा सर्द सा इक रंग फैला जा ब जा रह जाएगा MUJH MEN KYA TERE TASAWWAR KE SIWA REH JAAEGA SARD SA IK RANG PHAILA JAA BA JAA REH JAAEGA कर तो लूँ तर्क-ए-मोहब्बत लेकिन उसके बाद भी कुछ अधूरी ख़्वाहिशों का सिलसिला रह जाएगा KAR TO LOON TARK E MOHABBAT LEKIN US KE BAAD BHI KUCHH ADHOORI KHWAAHISHON KA SILSILA REH JAAEGA कारवाँ तो खो ही जाएगा ग़ुबार-ए-राह में दूर तक फैला हुआ इक रास्ता रह जाएगा KAARWAAN TO KHO HI JAAEGA GHUBAAR E RAAH MEN DOOR TAK PHAILA HUA IK RAASTA REH JAAEGA टूट जाएंगी उम्मीदें , पस्त होंगे हौसले एक तन्हा आदमी बेदस्त-ओ-पा रह जाएगा TOOT JAAENGI UMMEEDEN PAST HONGE HAUSLE EK TANHA AADMI BE DAST O PAA REH JAAEGA मैं अगर अपनी ख़मोशी को अता कर दूँ ज़ुबाँ हैरतों के दायरों में तू घिरा रह जाएगा MAIN AGAR APNI KHAMOSHI KO ATAA KAR DOON ZUBAA.N HAIRATON KE DAAIRON MEN TU GHIRA REH JAAEGA रुत भी बदलेगी , बहारें आ भी जाएँगी मगर इस ख़िज़ाँ का राज़ चेहरे पर लिखा रह जाएगा RUT BHI BADLEGI BAHAAREN AA