याद जब हम को कई यार पुराने आए
याद
जब हम को कई यार पुराने आए
शमअ
इक हम भी सर-ए-राह जलाने आए
इक
तेरी याद ने क्या क्या न परेशान किया
रोज़
ले ले के शब-ए-ग़म के बहाने आए
दोस्तो, है बड़ा एहसान कि तुम
जब भी मिले
याद
फिर हम को कई ज़ख़्म पुराने आए
ज़िन्दगी
ग़म के ख़ज़ानों की है ख़ाज़िन जब से
कितने
ग़मख़्वार ये दौलत भी चुराने आए
दिल
की वीरान फ़ज़ा में है ये कैसी हलचल
कितने
तूफ़ान यहाँ शोर मचाने आए
उम्र
भर देते रहे हम तुझे लम्हों का हिसाब
ज़िन्दगी
हम तो तेरा क़र्ज़ चुकाने आए
नारसा
है मेरी फ़रियाद मुझे है मालूम
जाने
क्यूँ फिर भी तुझे हाल सुनाने आए
हौसला
ले के चले दिल में यही ठानी है
ऐ
फ़लक क़दमों में हम तुझ को झुकाने आए
ज़ो’फ़ परवाज़ में और ख़्वाब
फ़लक छूने का
जब
ज़मींदोज़ हुए होश ठिकाने आए
अब
तो “मुमताज़” सफ़र के लिए तैयार रहो
चल
पड़ो, जब कोई आवाज़ बुलाने आए
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