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Showing posts from October 29, 2018

ये राहतों में पिघलती सी बेकली क्यूँ है

ये राहतों में पिघलती सी बेकली क्यूँ है अजीब फाँस सी दिल में चुभी हुई क्यूँ है न मुनहसिर है अमल पर , न हौसलों की बिसात यहाँ नसीब की मोहताज हर ख़ुशी क्यूँ है ज़रा सी धूप भी लग जाए तो ये जल जाए ये शोहरतों का जहाँ इतना काग़ज़ी क्यूँ है ये क़ुर्बतों में अजब फ़ासला सा कैसा है बसा है रूह में , फिर भी वो अजनबी क्यूँ है जो मुझ को सुननी थी , लेकिन कही नहीं तुम ने बिछड़ते वक़्त भी वो बात फिर कही क्यूँ है हर एक सिम्त खिज़ाओं का सर्द मौसम है ये दिल की शाख़ तमन्ना से फिर लदी क्यूँ है मचलती ख़ुशियाँ हैं , हर सिम्त राहतें हैं तो फिर तेरी निगाह में "मुमताज़" ये नमी क्यूँ है ye raahtoN meN pighalti si bekali kyuN hai ajeeb phaans si dil meN chubhi hui kyun hai na munhasir hai amal par, na hauslon ki bisaat yahaN naseeb ki mohtaaj har khushi kyuN hai zara si dhoop bhi lag jaae to ye jal jaae ye shohratoN ka jahaN itna kaaghzi kyuN hai ye qurbatoN men ajab faasla sa kaisa hai basaa hai rooh meN, phir bhi wo ajnabee kyun hai jo m